लोलिता-1972, यहीं हैं रिश्ते, सोनीपत
आप लोलिता को वैष्णवी की कहानी में मिल चुके हैं , और मुझे एक सप्ताह पूर्व ही आपको उसकी कहानी सुनानी थी ,परन्तु पिछला हफ़्ता इतना व्यस्त रहा कि मुझे समय ही नहीं मिला कि मैं एक जगह बैठकर अपनी कहानी लिख सकूँ , हालाँकि मेरा दिमाग़ पूरी तरह इसी बारे में सोचता रहा ।
हा, वह लोलिता के लिए रोमांस ही था ! उन दिनों युवा लोग जो नहीं जानते थे उससे ज़्यादा प्यार में पड़ते थे बजाय इसके कि जो वो जानते थे , या यूँ कहें कि वे प्यार के आइडिया के प्यार में पड़ते थे , कुछ कुछ शैक्सपियर के नाटक टवैलवथ नाइट के ड्यूक ओरसिनो की तरह । प्रकाश , लोलिता का प्रेमी, दिखने में सुंदर था , वह उसकी क्लास को कालेज में एपलाइड मैथ्स पढ़ाता था । वह इतना अच्छा पढ़ाता था कि गणित जीवंत हो उठता था , बिजली की गति को नापने से लेकर सलवार सूट के लिए कपड़ा काटना , सब लोलिता के लिए गणित से वार्तालाप हो उठा । कठिन इक्वेशन का हल उसकी क्लास में ढूँढना , उसे एक उत्तेजना दे जाता था । प्रत्येक अंक , आकार, गहराई, दूरी , सब उसे आकर्षित करने लगे । आपको सुनकर आश्चर्य होगा इससे उसको एक तरह की स्वतंत्रता का अनुभव होने लगा, वह अपने चारों ओर गणित देख रही थी , इसके अतिरिक्त उसके लिए सब निरर्थक हो उठा ।
वो उसके कालेज के अंतिम दिन थे , एक दिन उसे अपनी कापी में एक पत्र मिला,
प्रिय लोलिता ,
तुम्हारा सौंदर्य मेरे ह्रदय के अन्जाने द्वार खोल देता है । क्या यह तुम्हारे लिए संभव होगा कि तुम मेरे साथ विवाह के विषय में सोचो ?
तुम्हारा,
प्रकाश
यक़ीन करिये , उन दिनों ये काफ़ी था किसी को अपना बवाय फ्रैंड कहने के लिए , बाक़ी के सवाल आप कभी नहीं पूछते थे, बस अपनी कल्पना से उनके उत्तर पा जाते थे । कहीं पकड़ी न जाये , , इस भय से उसने प्रकाश को पत्र नहीं लिखा , बल्कि एक दिन पड़ोसी के घर से फ़ोन किया, और कहा ,
“ आपके सवाल के जवाब में मेरी हाँ है ।”
उस रात वह सो नहीं पाई , उसके सामने अनंत ब्रह्मांड था , और प्रकाश एक एक करके इसके द्वार खोल रहा था । वह प्रकाश के लिए सब करना चाहती थी , खाना बनाना, सफ़ाई करना , सास ससुर की सेवा करना , और यदि उसके भाई बहन हैं तो उनका भी ध्यान रखना ।
इस तरह से प्रकाश के तीन पत्र लोलिता के पास आए और फिर प्रकाश ने लोलिता को अपने मित्र के घर मिलने के लिए बुलाया । उसकी ज़िंदगी में बस यही एक मुलाक़ात प्रकाश के साथ हुई थी । इस मुलाक़ात में प्रकाश ने लोलिता को बताया कि वह धनी परिवार से नहीं हैं , पर वह पी एच डी करना चाहता हैं और हो सकता है उसके बाद वे अमेरिका भी चला जायें । लोलिता ने कहा, वे जो भी निर्णय लेगा , वह उसका साथ दूँगी , और इसके लिए यदि उसे अपने माँ बाप का भी विरोध करना पड़े , तो वह करेगी।
बस, रोमांस का इतना ही अनुभव था लोलिता को, और इसके बाद तो पिता ने बस सीधा उस पर बम ही गिरा दिया । उनका विरोध करने का मतलब था , अपने परिवार की प्रतिष्ठा को नष्ट करना , और बहनों के भविष्य को ख़तरे में डालना । आपने कभी उन अंजान लंबे हाथों की पकड़ को अनुभव किया है , जो आपसे वह करा लेते हैं जिसको करते हुए आपका अंतर्मन तक काँप जाता है , अब वह प्रकाश , गणित के बारे में सोचने की बजाय उन परम्पराओं के बारे में सोच रही थी जो भीड़ के ख़ाली मस्तिष्क की उपज होती हैं । वहकेवल बाईस वर्ष की थी , और भय ने उसे अपंग कर दिया था ।
उसकी शादी से एक रात पहले , उसके पिता कमरे में आए । ऐसा बहुत कम होता था कि वे कभी किसी भी बेटी के कमरे में आएँ और बातचीत करने की कोशिश करें ।
लोलिता की हालत बहुत ख़राब थी , औरतें बाहर वरांडे में नाच गा रहीं थीं , और भीतर, उसके आँसू नहीं थम रहे थे । उसके पिता उसके साथ बिस्तर पर बैठ गए, उन्होंने उसके आँसू पोंछे और उससे कुछ घूँट पानी पीने के लिए कहा ।
कुछ पल रूक कर उन्होंने बात शुरू की
“ मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूँ लोली, तुम मेरी पहली संतान हो , जब तुम माँ बनोगी तब समझोगी कि मैं तुम्हारे लिए कैसा महसूस करता हूँ , पर अभी मैं तुमसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहता हूँ ।”
लोलिता ने उनकी तरफ़ सिर उठा कर देखा ।
उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा ,” लोली , जीवन में तुम्हारे पास हमेशा दो रास्ते होंगे , या तो तुम एडजैस्ट करो, या मुक़ाबला करो । दूसरों को उनकी ग़लतियों के लिए माफ़ करने की कोशिश करो, और अपने आप को भी हमेशा माफ़ कर दो ।”
उनकी आवाज़ में स्नेह था, सहानुभूति थी , और लोलिता की स्थिति को वे समझ रहे थे , लोलिता के मन में उनके लिए स्नेह और आदर उमड़ रहा था । वह उनकी छाती में सिर रखकर रोना चाहती थी , पर इससे पहले कि वह यह कर पाती , उन्होंने अचानक, सख़्त आवाज़ में कहा ,
“ और यह याद रखना इस घर में तुम्हारा स्वागत तभी तक है, जब तक तुम अपने पति की इजाज़त से आती हो , यदि लड़कर आओगी तो इस घर में तुम्हारे लिए कोई स्थान नहीं है ।”
यह सुनकर उसे लगा कि ये फ़ौरन कमरा छोड़कर चले जायें । इस घर में तो अब उसे रोना भी अपने अस्तित्व का अपमान लग रहा था । वह इस घर से निकलना चाहती थी , अब उसके लिए शादी के उन कड़े रीति रिवाजों से निकलना आसान हो गया ।
शादी से पहले उसने अपने सारे प्रेम पत्र जला दिये, ताकि उनका नामोनिशान मिटाया जा सके । वह दुष्यंत के घर आ गई और अजीब बात है, उसके घर को अपना बनाने में उसे बिलकुल समय नहीं लगा ।
दुष्यंत उसके इश्क़ में था, उसका शरीर, उसकी सुगंध , सब उसमें जादू जगा रहे थे , हर मेहमान को उसके पिता गर्व से कह रहे थे कि उनकी बहूँ कालेज में पढ़ी है । उसकी सास एक सीधी सादी घरेलू औरत थी, उनसे बातचीत करना आसान था, और वे लोलिता के कामों में ज़्यादा दख़लंदाज़ी नहीं करती थी ।
पहली रात जो उसने दुष्यंत के साथ बिताई थी, उसी में वह समझ गई , यह व्यक्ति जानता है इसे ज़िंदगी से क्या चाहिए और उसे कैसे पाना है वह अपना बिज़नेस बढ़ाना चाहता था और उसके पास इसकी सही रणनीति थी । उसे घर में शांति चाहिए थी और उसने लोलिता से साफ़ शब्दों में कह दिया कि क्योंकि वह इकलौता बेटा है, वह माँ बाप के साथ रहना चाहता है, इसलिए लोलिता को उनके साथ अच्छे संबंध बनाकर रखने होगे , इसके बदले में वह उसे हर तरह की स्वतंत्रता देगा , नौकरी करने तक की भी ।
लोलिता के लिए यह पर्याप्त था । एक प्राइवेट स्कूल में उसे गणित पढ़ाने की नौकरी मिल गई । वह हर शाम लोलिता को बाहर घुमाने ले जाता, रेस्टोरेंट, शापिंग , वह उसकी हर ख़्वाहिश पूरी करता । वह पहली बार अपना शारीरिक सौंदर्य जान रही थी , शाम को वह बड़े उत्साह से उसके लिए तैयार होती । वह सुबह जल्दी उठती, स्कूल जाने से पहले सास की किचन में मदद करती , नौकर उसका कहना मानते, ससुर जी के वह एकाउंट्स देखती । वह सब जगह थी , उसकी यह दुनिया भरपूर थी । सब उसे गृहलक्ष्मी मानते थे , यानी वह स्त्री जो घर में शांति और संपदा आने का कारण बन उसे स्वर्ग बनाती है ।
परन्तु एक दिन कुछ ऐसा हुआ, जिससे उसकी दुनिया बदलने लगी ।
——-शशि महाजन