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26 Apr 2025 · 1 min read

ठोकरे मंजिल का पैगाम है

#ठोकरे मंजिल का पैगाम है

ऐसी ऐसी ठोकर खाई हमनें,
पता चला क्या है जीवन दाम।
चेहरे पे चेहरे देखे है इतने,
ठोकरें दे गई मंजिल का पैगाम।

पता चला काम आये कितने,
जिंदगी से सबक लेकर हम।
दिल न माने किसीसे रूठने,
ठोकरें दे गई मंजिल का पैगाम।

दौलत के पुजारी लगे रंग बदलने,
सिखा दिया दाम करता है काम ।
दूर से देखेंगे ना आयेंगे साथ देने,
ठोकरें दे गई मंजिल का पैगाम।

यांहा ठोकरें जरूरी है जीने,
करने बडे बडे मुस्किल काम।
एक जगह मत बैठो कभी रोने,
ठोकरें दे गई मंजिल का पैगाम।

स्वरचित मौलिक – कृष्णा वाघमारे, कुंभार पिंपळगाव, ता. घनसावंगी जि. जालना 431211, महाराष्ट्र.

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