नफरत से प्यार हार जायेगा क्या?
उसकी कलाई की चूड़ियां छनक भी न पाई थी कि टूट गई,
हाथों की मेंहदी रच भी न पाई थी कि छूट गई।
पायल के घुंघरू बजे भी नहीं थे ठीक से अभी,
उससे पहले ही गिर के बिखर गए।
घूंघट उठाके मुखड़ा ढंग से पिया देख भी न सके कि,
साजन के मुंह पर कफ़न देखना पड़ा उसे।
जो फूल गजरे में, कमरे में सजने वाले थे,
वही फूल अपने महबूब की कब्र पर चढ़ा आई।
मांग सूनी कर दी गई मेरी, सिंदूर पोंछ दिया था मेरा।
क्या कसूर था, क्या बिगाड़ा था किसी का जो लूटकर ले गए दरिंदे सुहाग मेरा।
सब के सब चुप बैठोगे क्या?
नफरत से प्यार हार जायेगा क्या?
ये सिर्फ मेरा ही किस्सा नहीं है,
ये कहानी है हर हिंदुस्तानी की।
किसी राजा और किसी रानी की।
कश्मीर की वादियां क्या अब नहीं देखने जायेंगे हम कभी?
फूलों की क्यारियों और पर्वतों में सपने नहीं सजाएंगे हम कभी?
नहीं मैं चुप नहीं बैठूंगी अब और न ही तुमको चुप बैठने दूंगी।
आंसुओं के सैलाब में न तैरुगी और न ही तुमको तैरने दूंगी।