*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
26/04/2025
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
सदा बदलता रहता है, ये तुझको भी है पता, उम्र सहित यह नाम।
कल तू कहाँ था क्या पता, आज बना गर्भस्थ शिशु, कल बालक इस ग्राम।।
फिर किशोर कहलायेगा, नयी जवानी आ गयी, नया बनाया धाम।
प्रौढ़ हुआ अति बूढ़ा भी, समय सरकता ही गया, जीवन हुआ तमाम।।
आसपास जो साधन हैं, उनसे सुख है चाहता, शाश्वत नहीं अनंत।
धन जन तन सुख वैभव में, अगर कहीं सुख हो निहित, नहीं त्यागते संत।।
ये तेरा बेहोशीपन, जन्म मृत्यु के मध्य था, बनता फिरता कंत।
मिथ्या सुख की चाह रखी, सच्चे सुख की चाह में, दुख पाया अत्यंत।।
मँगनी माँ दिन नई चले, करतब कर मन मोर तैं, हावे हांडी उपास।
हाथ गोड ला तैं हला, अपन ठठा जाँगर अभी, लाबे बीस पचास।।
आलस मा दिन कटै नहीं, निंदा होही सो अलग, सबके बनबे दास।
एखर सेती मिहनत कर, सुखी रही परिवार हर, लाबे नवा उजास।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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