फिर से मिलते हैं
स्वप्नों के मधुबन में,
प्रेम से भरे उन पत्रों में,
स्मृतियों के भीगे सावन में,
नयनों के नीले अंबर में—
चलो,
वहीं कहीं फिर से मिलते हैं।
चुपके-चुपके,
किसी अनजाने से गाँव में,
झुरमुट पेड़ों की छाँव में,
भटके हुए पहाड़ी बादलों में—
चलो,
वहीं कहीं फिर से मिलते हैं।
नदी की ओर ले जाती
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों में,
जहाँ तितलियाँ और भौंरे
मधुरस चुरा ले जाते हैं—
उन रंग-बिरंगे पुष्प-वाटिकाओं में,
पीली सरसों के मुस्काते खेतों में,
पुरवाई को पुकारती
पनघट की मीठी बाँहों में—
चलो,
वहीं कहीं फिर से मिलते हैं।
जहाँ कूकती है कोयल,
आम्र-बौरों की अमराई में,
सुरभित गीतों से गूंजते कानन में,
खिलौनों की दुनिया समेटे हुए,
गाँव की मिट्टी वाले आँगन में—
चलो,
वहीं कहीं फिर से मिलते हैं।
✍️दुष्यंत कुमार पटेल