वेदना

शहनाई की गूंज यूं बंदूकों के साये में सहम जायेगी,
सोचा न था।
सिंदूरी शाम इस कदर स्याह रातों में बदल जायेगी,
सोचा न था।
लबों की मुस्कुराहट खामोश सिसकियों में बदल जायेगी,
सोचा न था।
तसव्वुर में जिनकी तस्वीरों का खजाना है,
जहन में ये इक तस्वीर खिंच जायेगी,
सोचा न था।
बैठे थे पहलू में जिनके, वो दामन छुड़ाकर यूं चले जायेंगे,
सोचा न था।
हिना से लिखे तेरे नाम की रंगत अभी छूटी भी न थी,
कि तुम खुशबू बन कर फिजा में बिखर जाओगे,
सोचा न था।
आँखों की गुस्ताखियां अभी परवान चढ़ी भी न थीं,
तुम आँखों से ही ओझल हो जाओगे,
सोचा न था।
एक अनंत में विलीन हो गये तुम,
और दे गये एक अनंत वेदना।
सुर्ख जोड़ों में विदा कर तुम लाये थे,
सफेद साड़ी में तुम्हें अलविदा कैसे कहूं————-