गीतिका

संकीर्णता से यथाशीघ्र उबरें
बृहत दृष्टिकोण को अपनायें
वर्चस्व के लिए युद्ध न छेंड़ें
प्रेम और स्नेह को अपनायें
पाने की नही देने की चाह
जागृत हो ऐसी राह अपनायें
षडयंत्र समझें समय रहते
चालाक हों बुद्धिमान कहलाएं
मुश्किल होंगी कई रंग भरी राहें
प्रयास तो करें कि समझ पाये
अपनों मे गर अपनत्व नही
ढोंगी पाखंडी से दूरी बनायें