Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
24 Apr 2025 · 2 min read

गोल माल है सब गोल माल है !!

हो गये होंगे तीस चालीस साल,
बनी थी एक फिल्म गोल माल,
है ना यह कमाल,
आज मचा हुआ है यही धमाल,
क्या कल्पना की थी यार,
क्या था दिल दिमाग में सवार,
क्या था इसका आधार,
जो सोचा गया था तब,
वह घटित हो रहा है अब,
हो रहा है वैसा का वैसा ही,
वही,जो फिल्म में कही गयी,
दोहरे चरित्र का है वर्णन,
कर रहे हैं सब वही अर्पण,
जी हजूरी से लेकर चरण वंदन,
अवसर पाते ही मान मर्दन,
कभी श्रद्धा पूर्ण अभिनंदन,
तो कभी घात प्रति घात का क्रंदन,
व्यक्ति पूजा की चरम अंधभक्ति,
कहीं दिखावे का समर्पण,
तो कहीं तिरस्कार पूर्ण विरक्ति,
कहीं करुणा की अभिव्यक्ति,
तो कहीं जान लेवा आसक्ति,
रंग बदलने की प्रवृत्ति,
गिरगिट से भी तेज प्रकृति,
एक दूसरे को दागदार बताना,
अपने पापों पर आंसू बहाना,
गाली गलौज और झगड़ालू चरित्र,
करते जा रहे हैं कारनामें विचित्र,
अब इनकी क्या क्या कहें,
बस चुपचाप जा रहे हैं सहे,
किसकी माने सच,
और किसको समझें झूठा,
इनके आचरण से मन टुटा,
रटा रटाया देते हैं भाषण,
फरेब के दम हो रहा शासन,
मान मर्यादा की हो गई है तिलांजली,
संविधान को दे आये हैं श्रद्धांजलि,
झूठी शपथ कपटपूर्ण आचरण,
करते हैं इसका नित्य वाचन,
क्या बताएं कितने सवाल हैं,
रोज ब रोज नये नये बवाल हैं,
चोरी भी और सिनाजोरि भी,
झूठ भी और फरेब भी,
लूट और कत्लेआम ,
हो जाता है सरेआम,
बस यही रह गया है काम,
रहा नही अब विश्राम,
सुबह और श्याम,
घटित हो रहा यही तमाम,
है ना यह सवाल,
टेढ़े रस्ते हैं,
टेढी है चाल,
गोलमाल है ,
सब गोल माल!!

Loading...