हम ज़ात पात के नाम पर खुद को टुकड़ों में बाँट रहे ,

हम ज़ात पात के नाम पर खुद को टुकड़ों में बाँट रहे ,
धर्म पूछकर आज विधर्मी, सरेआम ही हमको काट रहे,
फूट डालो और राज़ करो, यह नीति अब भी कायम है
हम छोड़ तिलक, चंदन, चोटी, इफ्तार के पत्तल चाट रहे
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