सुनो कश्मीरियो!

तुम्हें क्या लेना देना विकास से ,
और तुम्हारा क्या सरोकार रोजगार के अवसरों से ।
हमारे कश्मीरी पंडितों का हक ,
छीन लिया,और जुल्म करके निकाला उनके घर से।
अब भी यह जुल्म जारी है बेखटक,
तुम मिले जो हुए हो देश के दुश्मन आतंकवादियों से ।
दावा करते हो और दिखवा भाईचारे का ,
मगर अंदर से तार जुड़े हुए हैं पड़ोसी दुश्मन देश से ।
अब तक स्थानीय हिन्दू नागरिकों की हत्या हेतु ,
मिले हुई थे आतंववादियों से.
मगर अब चंद दिनों के लिए सुकून की तलाश में,
आए पर्यटकों को भी नहीं बख्शा।
तुम्हारी फितरत हमें मालूम पड़ गई ,तुम क्या हो !
अब तुम्हारी गद्दारी के सबब ,सामना करना होगा ,
अपने अंजाम से ।
अब यह घड़ियाली आंसू बहाना छोड़ो ,
और न दो इस्लाम और कश्मीरियत का वास्ता ।
तुम कितने स्वार्थी हो ,यह भी हम जान गए ।
पेट पर लात पड़ी तो तुम्हारे होश ठिकाने आ गए!
अब कोई तुम्हारे कश्मीर में कदम भी नहीं रखेगा ।
क्योंकि हर हिन्दुस्तानी के दिल भरे हुए है नफरत और
डर से ।