“छुक-छुक करती आती रेल” बाल कविता

बाल कविता–
_छुक-छुक करती आती रेल_ ..!
बजती सीटी, करती खेल,
छुक-छुक करती आती रेल।
बलखाती, लहराती चलती,
अमरलता की जैसे बेल।
नदी लाँघ, गुज़रे पर्वत से,
कभी भी नहीं होती फ़ेल।
चुन्नू, मुन्नू, जो मन खाओ,
बिस्किट, चाय, चना और भेल।
मूँगफली वाला, लो आया,
केलों की भी, लगी है सेल।
लम्बे, ठिगने, गोरे, काले,
रामू, अब्दुल, सनी, बघेल।
ज़रा सँभल कर चढ़ना भय्या,
भीड़ बहुत है ठेलमठेल।
मुसकाओ, बतियाओ भी कुछ,
ना कोई किचकिच न ही झमेल।
रस्ता कटता जाए प्रेम से,
सबके बीच कराती मेल।
_छुक-छुक करती आती रेल_ ..!
(डॉक्टर आशा कुमार रस्तोगी।।)
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