जिंदगी जीने की कोशिश....!
जिंदगी जीने की कोशिश….!
इस भागदौड़ की जिंदगी में जिंदगी जीना बेहद मुश्किल है। “जिंदगी जीना” यह शब्द कहने में बहुत सरल लगता है लेकिन उतना ही मुश्किल होता है उन शब्दों के एहसासों को समझ कर जीना।
मेरे ख्याल से आज की जिंदगी के दो पहलू हैं एक वह जो हम जी रहे हैं और दूसरा जो हम जीना चाहते हैं दोनों में जमीन आसमान का फर्क होता है
लेकिन पहला पहलू ही आज की तारीख में हर इंसान को अच्छा लगता है…
कहते हैं ना कि बेवकूफी और बगावत में फर्क होता है…
और आज की तारीख में इंसान बेवकूफी से ज्यादा बगावत कर अपनी जिंदगी को “जी” रहा है लेकिन वह जो “जीना चाहता” है वह नहीं जी पाता…
यहि वजह है कि भागदौड़ की जिंदगी में हर इंसान खुद की अपनी पहचान कोने में छोड़कर जिंदगी से मिलीं कई पहचानो को अपनाकर जिंदगी जी रहा हैं। क्योंकि कहा जाता है कि बोझ होता है कुछ जिम्मेदारियों का, कमाल की बात है कि आज की तारीख में लोगों को खुद की जिम्मेदारियां बोझ लगती हैं।
इसलिए कभी रुको, तो कभी सोचो, खुद को दे कर दो पल, खुद पर विचार करो कि क्या जो हम जिंदगी जी रहे हैं। जीने के लिए जी रहे हैं या फिर एक कार्य को पूरा कर रहे हैं….
क्योंकि जिंदगी जीवन की कल्पना की एक डोर है जिससे ज्यादा खींच लो तो दिक्कत, उसे ढील तो दिक्कत…
इसीलिए जिंदगी क्या है, कहां है, कैसे जिए, बड़े सवाल है जनाब..!
सुबह से शाम तक जिंदगी समझने में निकल जाती है लेकिन जिंदगी में जो सुकून चाहिए होता है वह नहीं मिलता।
अरे हां और खुशियां भी तो हैं जो होती है सिर्फ मन बहलाने वाली जिसकी वास्तविक का जीवन से कोई लेना देना नहीं होता, उन दो पल की खुशियां वह सुकून नहीं दे पाते, लेकिन हां खुशियां जिंदगी जीने की चाहत बढ़ जाती है। क्योंकि जिंदगी आग है, जीना फौलाद है सफर बारूद है, पीछे राख है….
और कहते हैं ना…
कि कितना बदलू मैं खुद को ए जिंदगी तू कुछ मुझको भी अपनी मर्जी चलाने दे…
दो पल सुकून के तू दे इस जीवन में खुशियां हर हिस्से आने दे…
यू झटके दे देकर कर तू डराया ना कर जिंदगी…
यह इंसान है धीरे-धीरे समझ जाएगा तुझ में ढलने का सलीका…
क्योंकि अभी शब्दों से खेलते हुए जिंदगी गुजर रही है…
जब तरसती, उलझती, समझाते हुए गुजरेगी…
तब जिंदगी को जी लेने का बस मन चाहेगा…
किरन मौर्या, नोएडा
8076351533