*ज्ञानदीप आचार्य शीलक राम जी "
“ज्ञानदीप आचार्य शीलक राम जी”
ज्ञान-दीप की लौ बनकर जो,
अंधकार में रोशनी भरते,
वेदों की वाणी में प्रेम रचाकर,
हरियाणवी धरती को गौरव करते।
विवेकानंद की वाणी जैसे,
संघर्षों में भी सच्ची सीख,
दर्शन की गहराई में डूबे,
हर शब्द बने जीवन का संगीत।
पं. लखमीचंद के पदचिन्हों पर,
संस्कृति का गान रचाया,
‘विश्वगुरु आर्यावर्त भारत’ से,
भारतीय आत्मा को जगाया।
प्रेम-दर्शन के रचनाकार,
सच्चे साहित्य-साधक आप,
हर पुस्तक में जीवन धड़कता,
हर पंक्ति में छुपे प्रभु के जाप।
योग, वेद और शोध की सरिता,
जिसमें नित्य आप बहते हो,
बिना थके, निःस्वार्थ सेवा में,
ज्ञान-यज्ञ में तपते हो।
हे आचार्य! आप हमारे समय के
सच्चे ऋषि, सच्चे ब्रह्मवेत्ता,
भारत की मिट्टी के सुगंधित फूल,
सदियों तक रहेगा आपका
लेखन अमर-नवलेखा।