शीर्षक : भगवान दिखता क्यों नहीं है तू।*
हे आदि तू,हे अनंत तू
कण-कण में तू ,रज- रज में तू ।
खेतों की हरियाली में तू
बच्चों की किलकारी में तू।।
भगवान है कहां रे तू।।
भगवान दिखता क्यों नहीं है तू।।
मेरी बेबसी में तू, मेरी हंसी में तू
मेरी खुशी में तू, मेरी मायूसी में तू।।
हर प्रतिमा में तू हर उपमा में तू
हर अलंकार में तू हर श्रृंगार में तू।।
भगवान है कहां रे तू।।
भगवान दिखता क्यों नहीं है तू।।
हर कृति में तू हर संस्कृति में तू
हर शक्ति में तू हर भक्ति में तू।।
हवाओं में तू फिजाओं में तू
बादल में तू घटाओ में तू।।
भगवान है कहां रे तू।।
भगवान दिखता क्यों नहीं है तू।।
हर मूरत में तू हर सूरत में तू
जीवन में तू मरण में तू।।
एक में तू अनेक में तू
क्षितिज में तू फलक में तू।।
भगवान है कहां रे तू।।
भगवान दिखता क्यों नहीं है तू।।
हर दृश्य में तू हर अदृश्य में तू
हर बीज में तू हर वृक्ष में तू।।
हर चमक में तू हर दमक में तू
हर सत्य में तू हर असत्य में तू।।
भगवान है कहां रे तू।
भगवान दिखता क्यों नहीं है तू।।
रानी शशि दिवाकर अमरोहा