डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त
डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त
मैने तुमको इतना देखा, जितना देखा जा सकता था।
नयन भीगते रहें रात भर दो आंखों से कितना देखा जा सकता था।
पथराई नजरों ने आखिर थक ही जाना था।
मैं भी इक इन्सान हूं यारा आखिर मुझको मुरझाना था।
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