विभिन्न धारणाओं में कैद औरत

विभिन्न धारणाओं में कैद औरत
औरत कभी माँ, कभी बहन, कभी बेटी और कभी पत्नी बनकर हमारे जीवन का आधार बनती है। इसके बावजूद समाज में आज भी उसके बारे में ऐसी बातें कही जाती हैं जो न सिर्फ असत्य हैं, बल्कि अपमानजनक भी।
“औरत पर भरोसा नहीं करना चाहिए, औरत राज़ नहीं रख सकती, औरत की जगह सिर्फ रसोई या बिस्तर में है।” ऐसी सोचों ने औरत को हमेशा शक, भोग और कमज़ोरी की नज़र से देखा है। अब वक़्त है कि इन धारणाओं पर सवाल उठाया जाए और उन्हें बदलने की पहल की जाए।
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1. समाज की बनी-बनाई सोच: हमारा समाज सदियों से पुरुष प्रधान रहा है, जिसमें औरत को एक सीमित दायरे घर, रसोई, बिस्तर और बच्चों की परवरिश में समेट दिया गया। धीरे-धीरे यह सोच इतनी पक्की हो गई कि औरत को लेकर भ्रांतियाँ ‘सामान्य समझ’ का हिस्सा बन गईं। यही वह मानसिकता है जो आज भी उसकी तरक्की की राह में दीवार बन कर खड़ी है।
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2. आम भ्रांतियाँ बनाम सच्चाई
भ्रांति 1: औरत की जगह रसोई और बिस्तर है।
सच्चाई: औरत का अस्तित्व किसी कमरे या कार्य तक सीमित नहीं। वह अंतरिक्ष में उड़ान भर सकती है, देश चला सकती है और समाज को दिशा दे सकती है।
भ्रांति 2: औरतें भावना प्रधान होती हैं, इसलिए निर्णय लेने में कमजोर होती हैं।
सच्चाई: भावना कमजोरी नहीं, सहानुभूति की ताकत है। आज की दुनिया को ऐसे ही संवेदनशील नेतृत्व की ज़रूरत है, जिसे महिलाएँ बखूबी निभा रही हैं।
भ्रांति 3: औरतों पर ज़िम्मेदारी डालना जोखिम भरा होता है।
सच्चाई: हर क्षेत्र में औरतों ने ज़िम्मेदारी को सफलता में बदला है। शिक्षा, विज्ञान, राजनीति, या सुरक्षा बल यानी हर जगह उनकी भूमिका प्रभावशाली रही है।
भ्रांति 4: औरतें वफ़ादार नहीं होतीं।
सच्चाई: यह सबसे पुरानी और सबसे अपमानजनक सोच है। वफ़ा का रिश्ता लिंग से नहीं, व्यक्तित्व से होता है। औरतें हर रिश्ते में खुद को खो देती हैं। बस उन्हें सही सम्मान और विश्वास मिलना चाहिए।
भ्रांति 5: औरतें घर से बाहर निकलेंगी तो परिवार टूट जाएगा।
सच्चाई: औरत अगर बाहर जाकर काम कर रही है, तो वह परिवार को आर्थिक और मानसिक रूप से सशक्त बना रही है। घर की एकता सहयोग से बनती है, किसी के बाहर निकलने से नहीं टूटती।
भ्रांति 6: औरतें एक-दूसरे की दुश्मन होती हैं।
सच्चाई: यह धारणा समाज ने बार-बार दोहरा कर एक भ्रम खड़ा किया है। सच्चाई यह है कि औरतें जब साथ आती हैं तो बड़े-बड़े बदलाव संभव होते हैं, चाहे वह महिलावादी आंदोलन हो या किसी पंचायत में नेतृत्व की कहानी।
भ्रांति 7: शादी और बच्चों के बाद औरत की महत्वाकांक्षा खत्म हो जानी चाहिए।
सच्चाई: औरतें मां, पत्नी बनने के साथ-साथ डॉक्टर, वैज्ञानिक, लेखक, खिलाड़ी और कुछ भी बनने का हक रखती हैं। महत्वाकांक्षा का लिंग से कोई लेना-देना नहीं होता।
भ्रांति 8: सुंदरता ही औरत की सबसे बड़ी पूंजी है
सच्चाई: यह एक सतही सोच है। औरत का असली सौंदर्य उसकी सोच, आत्मविश्वास और कर्म में छुपा होता है। चेहरा एक पहचान हो सकता है, लेकिन व्यक्तित्व उसकी असल ताकत है।
भ्रांति 9: औरत को अपने शरीर पर अधिकार नहीं होना चाहिए।
सच्चाई: यह सबसे गंभीर और खतरनाक सोचों में से एक है। औरत को अपने शरीर, पहनावे, पसंद और फैसलों पर उतना ही अधिकार है जितना एक पुरुष को। यह अधिकार ही मानवाधिकार है।
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3. प्रेरणादायक महिलाएँ
इन महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि अगर अवसर मिले तो औरत हर क्षेत्र में कमाल कर सकती है।
कल्पना चावला: अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला।
शहनाज़ हुसैन: सौंदर्य प्रसाधनों की दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पहचान।
सुदा चंद्रन: विकलांगता के बावजूद भरतनाट्यम में कीर्तिमान।
रश्मि बंसल: शिक्षा और उद्यमिता पर प्रेरक लेखन।
चंद्रा कोचर: बैंकिंग क्षेत्र में नेतृत्व की मिसाल।
मेधा पाटेकर: ग्रामीण संघर्षों की सशक्त आवाज़।
रज़िया सुल्तान: इल्तुतमिश की बेटी, दिल्ली सल्तनत की पहली और एकमात्र महिला सुल्तान थीं।
हिमा दास: खेतों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय दौड़ में स्वर्ण।
रसूलन बी: ठुमरी गायकी की एक ऐतिहासिक आवाज़।
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4. सोच बदलने की ज़रूरत
औरत कोई अबूझ पहेली नहीं, बल्कि एक सोचने-समझने वाली इंसान है। उसे सिर्फ रिश्तों या बिस्तर के घेरे में नहीं, एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में भी देखा जाना चाहिए।
हमें चाहिए कि —
बेटियों को कहें: “तुम किसी से कम नहीं हो”
बेटों को सिखाएँ: “औरत का सम्मान ही असली मर्दानगी है”
घरों, स्कूलों और कार्यस्थलों में बराबरी और सुरक्षा का माहौल बनाया जाए
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औरत को लेकर बनी भ्रांतियाँ केवल औरतों को नहीं, पूरे समाज की सोच को खोखला करती हैं। अगर हमें वाकई एक समतामूलक और विकसित समाज बनाना है तो इसकी शुरुआत घर से करनी होगी। बेटियों को विश्वास देकर और औरतों को इंसान की तरह स्वीकार करके।
औरत को बिस्तर तक समेटने की सोच जितनी सतही है, उतना ही उसका संघर्ष गहरा है। मां की ममता से लेकर एक कार्यकर्ता की कर्मठता तक। औरत को जब बराबरी मिलेगी, तभी समाज आगे बढ़ेगा। याद रखिए, सोच बदले बिना कोई क्रांति नहीं होती।