गौरैया प्यारी

संगीत प्रातः का तेरी किलकारी, मैं आँगन की गौरैया प्यारी
धूप बड़ी है छत और छज्जे पर, जाऊँ कहाँ हे सखी मैं न्यारी
फुर्र फुर्र उड़ना मैं चाहूँ , अदृश्य तरंगों से टकराऊँ
हाथ तेरे मैं आना चाहूँ , आटे का दाना खाना चाहूँ
कोई जतन इतना तू कर दे,मेरे घोषलें को भी घर दे
फिर तेरे बचपन से खेलूँ, तुझे पुनः चलना मैं सिखाऊँ
खिल खिल के पुकारे तू, ची ची आ री…..
सच कहती हूँ खुशियाँ आएँगी, मन को कलियाँ फिर भाएँगी
घर में शांत का होगा अभिनन्दन, कलुष तरंगे दूर जाएँगी
फिर से माँ चहक बोलेगी, लड़ाएगी भर आंचल का लाढ
और नई उमंगें घिर आएँगी, नई नई गौरैया और आएगी
खेतो की मेढ़ों पर भरती, ऊँची फिर नई उडारी
याद तुझे वो कूप के तीरे, शीतल जल में छपक छबीले
उड़ते नभ में पंख फैलाए, और भी साथी सब रंग रंगीले
खुश होंगे हम फिर से पाकर, मनुज प्रेम का मीठा आश्रय
हरियल तोता, कोयल गाएगी, कपोत पत्र के पात्र कबीले
फुर्र फुर्र मैं उड़ उड़ गाऊं ये सृष्टि कितनी है प्यारी