"एक तरफा मोहब्बत"
एक तरफा मोहब्बत का,एहितराम कुछ खास होता है।
ना ईर्ष्या,जलन और ना बेवफ़ाई का कोई राग रहता है।।
माना रहती है अधूरी और बेनाम सी,दिलों की ये मोहब्बत।
मगर इसमें भी सुकून और बेचैनी का तालमेल बेपनाह रहता है।।
लगा रहता है उसी का इंतजार,जिसका तू ना खासमखास होता है।
मगर तेरे लिए वो दुनिया में सबसे अज़ीज़ हमराह बना रहता है।।
निछावर कर के सारी खुशियाँ, चुपचाप एक तरफा हो जाना।
दिल का यह दिवानापन खुद को एक सुकून भरा ठहराव देता है।।
ना पाप ना पुण्य,ना कोई अपराध बोध ही कराता है।
एक तरफा मोहब्बत में तो बस ईश्वर का वास रहता है।।
न पाने की कोई अभिलाषा,न खोने का तनिक भी डर सताता है।
बस महबूब की तस्वीर से ही सारा दिल का आलम बयां होता है।।
हैं खालीपन मगर उसमें भी,जीने का अपना ही लुत्फ़ समाया है।
ना हो इजाजत बात करने की फिर भी तनिक सा ना रंज रहता है।।
कहां है किसके पास उसकी धड़कनों का सारा हिसाब।
इस बात का ना मलाल न जरा भी अफ़सोस होता है।।
नजर भर कर भी ना मिले देखने को,तो ना लगता है परायपन।
खुदा की तस्वीर में ही महबूब का अक्स हरदम चमकता रहता है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”