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22 Apr 2025 · 3 min read

लोक गायन के लोकपुरुष : डॉ. राकेश श्रीवास्तव

लोक गायन के लोकपुरुष : डॉ. राकेश श्रीवास्तव

भोजपुरी लोक संस्कृति के सजग प्रहरी

गोरखपुर की पुण्यभूमि पर जन्मे डॉ. राकेश चन्द्र श्रीवास्तव न केवल भोजपुरी लोकगीतों के एक प्रतिष्ठित गायक हैं, बल्कि वे इस संस्कृति के प्रखर प्रहरी, संवाहक और संरक्षक भी हैं। उनकी गायकी में गोरखधाम की मिट्टी की सौंधी सुगंध, ग्रामीण जीवन की सरलता और अध्यात्म की मधुरता समाहित है।

नाम: डॉ. राकेश चन्द्र श्रीवास्तव
जन्म तिथि: 20 मई 1963
पिता का नाम: स्व. श्री शम्भु शरण
निवास: 129, आर्यनगर दक्षिणी, गोरखपुर
ईमेल: rakeshbhojpuri@gmail.com
शिक्षा: स्नातक
सम्प्रति: पूर्व मुख्य कार्यालय अधीक्षक, पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर

लोकगायन: परंपरा से प्रेरणा तक

लोकगीतों में रचा-बसा उनका मन,
माँ से सीखा लोकसंगीत का धन।
माँ की गोदी में सुरों की धारा,
भावों ने रच दी स्वर की पंक्तियाँ प्यारा।

डॉ. राकेश श्रीवास्तव जी, प्रसिद्ध लोकगायिका स्व. मैनावती देवी श्रीवास्तव के पुत्र हैं। उन्हें लोक संस्कृति का संस्कार माँ से ही मिला। संगीत की पहली शिक्षा उन्होंने माँ की गोद में पाई। यही कारण है कि उनके गीतों में आत्मा की मिठास और माँ की ममता दोनों सुनाई देती हैं।

सम्मानित मंचों के स्वरपुरुष

राकेश जी आकाशवाणी के A ग्रेड कलाकार हैं और ICCR (भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद), नई दिल्ली द्वारा मान्यता प्राप्त कलाकार भी हैं। वे उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के पाँच वर्षों तक सदस्य रहे हैं। वर्तमान में भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ‘भाई’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं एवं विश्व हिंदू महासंघ के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सक्रिय हैं।

जहाँ-जहाँ स्वर पहुँचे उनके, वहाँ संस्कृति ने पंख पसारे,
भारत की मिट्टी ने फिर से, गीतों में रंग सारे।

भोजपुरी को वैश्विक मंच पर पहचान

आपने मस्कट, सिंगापुर, बैंकॉक, मॉरिशस जैसे देशों में भारतीय संस्कृति और भोजपुरी लोकगीतों का प्रतिनिधित्व किया। इन मंचों पर आपकी प्रस्तुति ने भारत की सांस्कृतिक गरिमा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

मंच विदेशी, भाव भारतीय, शब्दों में बसी मिट्टी,
जहाँ-जहाँ सुर पहुँचे उनके, भोजपुरी बनी कसमिट्टी।

अश्लीलता के विरुद्ध आवाज़

जब भोजपुरी संगीत में अश्लीलता का प्रवेश हुआ, तब राकेश जी ने निडरता से इसका विरोध किया। वे कार्यशालाओं और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से युवा पीढ़ी को शुद्ध लोकगायन की शिक्षा दे रहे हैं।

अश्लील सुरों से टकरा कर, सत्य के स्वर बोले,
संस्कृति के सच्चे प्रहरी ने, गीतों को फिर से तोले।

गोरखनाथ मंदिर से आध्यात्मिक जुड़ाव

गोरखनाथ मंदिर में प्रतिदिन उनके भजन गुंजायमान होते हैं। उन्होंने गुरु गोरखनाथ जी पर आधारित दो फिल्मों – “अलख निरंजन” और “जाग मछंदर गोरख आया” में स्वर दिया है।

गोरख की गाथा जब सुरों में बहती,
श्रद्धा की नदियाँ मन में कहती।
‘अलख’ जगे जब शब्दों में,
तो राकेश की साधना दिखे रचकर रागों में

प्रमुख एलबम और रचनाएँ

गोरख बानी

योगी जी की सेना चली

गोरख चालीसा

श्री चित्रगुप्त भजन

स्वामी प्रणवानंद जी के भजन

क्या गाऊं तुझे सुनाऊं

सम्मान और पुरस्कार

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त सम्मान:

संस्कार भारती कला सम्मान

प्रतिभा सम्मान (जिला प्रशासन)

भोजपुरी गौरव 2008 (श्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा)

भोजपुरी विभूति (पं. किशन महाराज द्वारा)

राजनयिक सम्मान – अमेरिका, थाईलैंड, ओमान, सिंगापुर

एक्सीलेंस अवार्ड – सांसद श्री रविकिशन द्वारा

राष्ट्र गौरव सम्मान – धरा धाम इंटरनेशनल

सरस्वती सम्मान – स्वर गुंजन

सरयू रत्न सम्मान

स्वीप आइकन – जिला प्रशासन, गोरखपुर

भिखारी ठाकुर सम्मान – लखनऊ

सम्मान मिले भले अनेक, पर विनम्रता न छोड़ी,
हर प्रशंसा को माना प्रसाद, और संस्कृति की डोरी।

मानद उपाधियाँ व विशेष उपलब्धियाँ

आकाशवाणी स्वर परीक्षण बोर्ड के सदस्य रहे हैं।

मौनी तीर्थ हिंदी विद्यापीठ, उज्जैन (महाराष्ट्र) एवं विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर (झारखंड) द्वारा “विद्यावाचस्पति” की मानद उपाधि।

अमेरिका में ICCR के माध्यम से सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में चयन व सम्मान।

मॉरीशस सरकार द्वारा 2024 में भोजपुरी संगोष्ठी हेतु आमंत्रण।

विदेशों में गूंजा स्वर जब, भारतीयता का मान बढ़ा,
लोकगायन के इस दूत ने, संस्कृति का ध्वज चढ़ा।

राकेश श्रीवास्तव आज भी युवाओं को लोकगायन सिखा रहे हैं। वे कार्यशालाओं, संगोष्ठियों और डिजिटल मंचों के माध्यम से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से जोड़ रहे हैं।

जिसने सुरों में साध लिया, मिट्टी का पावन प्यार,
वह लोकगायक बना हमारा, संस्कृति का अद्भुत उपहार।

समर्पण, साधना और संस्कृति के सुगठित सेतु—डॉ. राकेश श्रीवास्तव—हमारे समय के ऐसे लोकपुरुष हैं, जो न केवल सुरों से सृजन करते हैं, बल्कि लोकमन में आशा, गरिमा और पहचान भी भरते हैं।

लेखक: डॉ. सौरभ पाण्डेय
प्रमुख – धरा धाम इंटरनेशनल

9454851731

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