Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
22 Apr 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

है बड़ी ही बेवफ़ा तू जिंदगी
पल में कर जाती ख़ता तू जिंदगी

क्या पता किस मोङ पर ला कर रखे
है बला से भी बला तू ज़िदगी

खोजते हैं सब यहाँ दर ब दर तुझे
कब मिली किसको बता तू जिंदगी

छोङती हर वक्त के पद चिह्न को
लगती मुझको काफ़िला तू जिंदगी

दर्द आँसू इश्क़ शबनम को ढो रही
है ग़ज़ल में काफ़िया तू जिंदगी

सच दिखा देती उठा के पर्दे को
सच में है इक आइना तू जिंदगी

क्यों मुहब्बत में भटकता है बशर
दे रही कैसा सिला तू जिंदगी

मौन सी चुप हर घङी हो सामने
अपनी भी तो कुछ सुना तू जिंदगी

हो रहा है बेहया क्यों आदमी
पाठ इसको भी पढ़ा तू जिंदगी

डा सुनीता सिंह सुधा
20/4/2025 वाराणसी ©®9671619238

Loading...