ग़ज़ल
है बड़ी ही बेवफ़ा तू जिंदगी
पल में कर जाती ख़ता तू जिंदगी
क्या पता किस मोङ पर ला कर रखे
है बला से भी बला तू ज़िदगी
खोजते हैं सब यहाँ दर ब दर तुझे
कब मिली किसको बता तू जिंदगी
छोङती हर वक्त के पद चिह्न को
लगती मुझको काफ़िला तू जिंदगी
दर्द आँसू इश्क़ शबनम को ढो रही
है ग़ज़ल में काफ़िया तू जिंदगी
सच दिखा देती उठा के पर्दे को
सच में है इक आइना तू जिंदगी
क्यों मुहब्बत में भटकता है बशर
दे रही कैसा सिला तू जिंदगी
मौन सी चुप हर घङी हो सामने
अपनी भी तो कुछ सुना तू जिंदगी
हो रहा है बेहया क्यों आदमी
पाठ इसको भी पढ़ा तू जिंदगी
डा सुनीता सिंह सुधा
20/4/2025 वाराणसी ©®9671619238