*बच्चों को समझो*

बच्चों को समझो
उमेश जब भी अपने परिवार के साथ बैठता था या खाना खाता था, तो वह एक ही रट अपने परिवार वालों से लगता रहता था, कि बा हुक बा हुक। बा हुक-बा हुक कहते हुए वह अपनी नाक की तरफ को भी अपने हाथ से इशारा करता रहता था। घर परिवार वाले उसके ऐसे व्यवहार को देखकर पहले तो हैरान होते थे, लेकिन धीरे-धीरे वे इस बात से चिंतित भी होने लगे कि यह बा हुक-बा हुक क्या करता रहता है। वह उठते, जागते घूमते-फिरते हर समय यही कहता था बाहुक-बाहुक। उमेश का ऐसा रवैया देखकर घर वाले तंग आ चुके थे, लेकिन उन्हें इस बात का कुछ भी पता नहीं था, कि यह पिछले एक साल से बा हुक-बा हुक क्यों कहता है। उमेश मानसिक रूप से कुछ कमजोर था और समझ भी उम्र के हिसाब से इतनी अच्छी नहीं थी। उसके बोलने में भी स्पष्टता नहीं दिखती थी।
एक साल पहले की बात है। वह अचानक से ही अपने परिवार वालों से एक साल पहले से ही बा हुक-बा हुक कहना शुरू किया था। इस बात का किसी को कुछ नहीं पता था, कि यह बा हुक-बा हुक अचानक से क्यों कहने लगा है? पर घर वाले इस बात पर अचंभित जरूर हो रहे थे, कि यह अचानक इस प्रकार क्यों बोल रहा है। बातों में स्पष्टता न होने के कारण, और उम्र के अनुसार समझ न होने के कारण, वह इस बात को अच्छे से नहीं बता पा रहा था और वे इस बात को पहचान नहीं पाए और ना ही उसकी बात को समझ पाए कि उसके कहने का मतलब और उद्देश्य क्या है? उसकी रोज ऐसी की हरकत देखकर घर वाले उसे पागल समझते और कहते कि यह मूर्ख है, कम बुद्धि वाला है, और इसे डांँट देते थे डाँट को सुनकर उमेश चुप हो जाता था।
घर वाले एक साल से उसकी इस हरकत से बहुत परेशान हो चुके थे, पर उन्हें इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था, कि इसका मतलब क्या है, यह क्या कहना चाह रहा है, नाक की तरफ हाथ से इशारा क्यों करता है? ऐसा नहीं था, कि घर वालों ने उसकी बात को समझने की कोशिश नहीं की या फिर हाथ से नाक की तरफ उसके इशारे को नहीं समझा, लेकिन हांँ व बा हुक-बा हुक क्या कहता है, इस बात को वे समझने में असमर्थ रहे।
एक दिन की बात है। परिवार के सारे लोग एक जगह बैठे हुए आपस में कुछ बातें कर रहे थे। उस समय अचानक उमेश को एक साथ कई तेज छींक आयीं आकछीं- आकछीं- आकछीं । इन तेज छींकों के साथ उसकी नाक के साथ-साथ कुछ चीज जाकर जमीन पर गिरी। उमेश ने जमीन पर ध्यान से देखकर तुरंत उसे चीज को अपने हाथ से उठाकर अपने पिताजी को दिखाई और कहा, “बा हुक-बा हुक”। पिताजी ने ध्यान से देखा तो यह पैन्ट का हुक था, जिसे पैन्ट में पैन्ट को बांँधने और उसे कसी करने के लिए लगाया जाता है। उमेश के पिता इस बात को देखकर पहले से भी ज्यादा हैरान हुए और उनको आज समझ में आया, कि उमेश रोज बा हुक-बा हुक क्यों कहता था? परिवार के लोग इस बात से भी काफी हैरान-परेशान थे, कि इसने अपनी नाक में यह कैसे फंसाया और एक साल तक तकलीफ सहते हुए किस प्रकार उसे अंदर फंसाए रखा। पिताजी और परिवार के सारे लोग इस बात को समझ चुके थे, कि उमेश को क्या परेशानी थी और वह बा हुक-बा हुक क्यों कहता था। वे सब इस बात से बहुत दुखी हुए कि हम उमेश की बात को, उसके हाव-भाव को, उसके इशारे को शायद पहले ही पहचान लेते या जान लेते तो उसे एक साल तक इतनी पीड़ा न सहनी पड़ती। इस बात से आज परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे, कि उमेश को जो बा हुक-बा हुक कहने की आदत बन चुकी थी, वह अब हमेशा हमेशा के लिए छूट गई है और उमेश को अब भविष्य में इससे कोई पीड़ा नहीं होगी।
ऐसी घटनाएंँ हमारे साथ भी जीवन में घटित होती रहती हैं। इसलिए अपने बच्चों पर हर समय विशेष ध्यान दीजिए, वह भी उमेश की तरह परेशान हो सकते हैं, अगर ऐसा होता है, तो इसका सीधा सा कारण यह है, कि हम अपने बच्चों पर इस प्रकार ध्यान नहीं दे रहे हैं जिस प्रकार देना चाहिए। ऐसी कहानियों से हमें, समाज को, देश को सीख लेने की जरूरत है, कि हमें कभी भी अपने बच्चों की बातों को नजर अंदाज न करके उन पर ध्यान दें और समझने की कोशिश करें, कि वह क्या कहना चाह रहा है। उसे क्या दिक्कत है, क्या परेशानी है आदि।