प्रकृति की मुस्कान
सुबह की पहली किरण में जो चमक है,
वो है प्रकृति की मुस्कान की झलक है।
ओस की बूंदों में मोती से भाव,
हर पत्ती पर लिखे हैं उसके सुखदाव।
फूलों की खिलखिलाहट, पंछियों की तान,
हर कोना करता है उसका गुणगान।
हरियाली की चादर, नदियों का गान,
ये सब हैं उसकी प्यारी पहचान।
पेड़ जब लहराते हैं मंद-मंद हवा में,
लगता है जैसे माँ हो दुआ में।
चाँदनी रातें हों या बरसात की बूँदें,
प्रकृति हँसती है, हर दर्द को बुनते।
कभी इन्द्रधनुष बन के आसमान सजाए,
कभी पर्वतों पर बर्फ की चादर बिछाए।
रेत की कहानी हो या समुद्र की तान,
हर रूप में छलके उसकी मुस्कान।
पर जब होता है उस पर वार,
कटते हैं जंगल, बहता है प्यार।
तब उसकी आँखों में दर्द उतर आता है,
मुस्कान भी जैसे चुपचाप छिप जाता है।
चलो फिर से खिलाएँ उसकी वो मुस्कान,
बचाएँ पेड़, नदियाँ और हर प्राण।
प्रकृति को दें हम अपना सम्मान,
ताकि सदा बनी रहे उसकी मुस्कान।
डॉ. मुल्ला आदम अली
तिरुपति, आंध्र प्रदेश