जंगल ये जंगल
जंगल ये जंगल, हरियाली का घर,
पेड़ों की छाया, नदियों का स्वर।
पंछी जो चहके, जैसे गीत गाएँ,
हर कोना बोले, बस शांति सुनाएँ।
झरनों की बातें, फूलों की खुशबू,
धरती की गोदी में सजी है सबू।
हिरन की छलांगें, मोर की अदा,
प्रकृति का ये रूप है सबसे जुदा।
नीम, पीपल, साल, बबूल,
खड़े हैं प्रहरी बन, रहते हैं कूल।
जानवर, पक्षी, कीड़े भी यहाँ,
सबका है हिस्सा, सबका है जहां।
पर खतरे में है अब ये जादू भरा,
मानव की लालच ने इसे भी मारा।
कटते हैं पेड़, सिमटती हैं राहें,
घटती हैं साँसें, मिटती हैं चाहें।
संभालो इसे, बचालो इसे,
जंगल की पुकार को सुनो ज़रा।
ये सांसें हैं अपनी, ये जीवन का रंग,
जंगल ये जंगल, है धरती का संग।
डॉ. मुल्ला आदम अली
तिरुपति, आंध्र प्रदेश