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1 May 2025 · 2 min read

खग-संदेश

एक रात सपने में देखा दिन जैसा धूप-छांव
बालकनी में सुना कुछ परिंदों का चांव-चांव
ग़जब हुआ कूजन को समझने लगे सपने में
विघ्न नहीं हुआ थोड़ा खग-संदेश समझने में ।

इत्मीनान से बैठ परिंदा मुझे लगा समझाने
पक्षी होकर मानव कर्म-धर्म लगा बतलाने
बोला-रहस्य की बात है अपने में ही रखना
कहा यदि किसी को तो महंगा होगा बचना ।

मैं आश्वस्त था विहग भला क्या बतलायेगा
जग का रहस्य कोई पंछी क्या समझाएगा
फिरभी बोला खग से,बोलो क्या बताओगे
बोला खग-वचन दो मानव धर्म निभाओगे ।

जैसे ही मैंने हामी भरी विहग लगा उचरने
मानव के पेशे में गजब का रंग लगा भरने
उजले काले कोट वाले से तू बच के रहना
फंस जाओगे फेर में भारी होगा निकलना।

पहला डर दिखा जेल का खूब तुझे लूटेंगे
दूजा शवगृह में रख लाखों का बिल करेंगे
बेचवा देंगे जर जमीन सब गहना गुडिया
तब आयेगा याद क्या कही थी वो चिड़ियाँ?

एक बात तुझे और मजे का बतला देता हूँ
आगे करेगा काम अत: मैं सिखला देता हूँ
खाखी खादी से मेलजोल तू कभी न करना
दोनों में है खा,खा जायेंगे,सदा बचकर रहना।

कोर्ट कचहरी की बात क्या मैं तुझसे बोलूँ
अच्छा है इसपर कि मैं अपना मुँह न खोलूं
आँख के सामने पेशकार पेशगी ले लेता है
झूठ-मुठ इंसाफ का मन्दिर इसे कह देता है।

सरकारी विभागों की बात तो है बडी न्यारी
बिना शुल्क दिये काम कराना है बहुत भारी
कहने को कहलाते हैं वे सब सरकारी सेवक
मालिक होकर जनता जाती बनकर याचक।

सब के सब होते एक सा,मैं ऐसा नहीं कहता
कुछ तो हैं जो ऊपरी आय को राख समझता
जान जोखिम में डाल कुछ हैं मदद करनेवाले
कुछ नर होते ऐसे ईमान-धर्म पर चलने वाले।

इतना दे उपदेश विहग उड़ चला गया वहाँ से
सोच में हूं आजतलक् खग था गलत कहाँ से
समझ नहीं आता मुझे लोग ऐसा क्यों करते हैं
धन-दौलत के खातिर लोग इतना क्यों गिरते हैं ?

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