बाल कविता

किसान
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धरा को जोतता बोता,
नये अंकुर उगाता है।
उगाता अन्न खेतों में,
हमें भोजन कराता है।।
कुहासा ठंड सीतल वात,
जल भी बर्फ सा होता।
सींचता भूमि अपनी को,
वह दिन-रात न सोता।।
उपज में रोग पशु पक्षी,
फसल अपनी बचाता है।
हुई जो चूक थोड़ी सी,
पूरी मेहनत गॅंवाता है।।
खाद पानी कीट-नाशक,
तेल की लागत लगाता।
फसल यदि ठीक हो जाये,
तो मंडी में भाव न पाता ।।
कभी वर्षा कभी ओला,
कभी यह आंधी सताती।
डरा सहमा सा वह रहता,
जब कहीं पर आपदा आती
काटता अपनी फसल को,
धूप-लू सहकर बराबर।
राज वह है अन्नदाता,
किसान है अपनी धरोहर।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)