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20 Apr 2025 · 1 min read

जीवन पथ

चलता तू जिस पथ पर ।
पुष्प लगता तू उस पथ पर।

कांटे चुनता तू उस पथ के ।
चुनता पत्थर उस पथ पर ।

कदम कदम सजाता तू ,
सहज सहज पग रखता पथ पर ।

मन्दिर कई बनाता तू ,
वन बाग सजाता तू पथ पर ।

कोई पथिक जो आए कभी ,
बिताए कुछ पल इस पथ पर ।

पा जाये कुछ विश्राम यही ,
आसान सफ़र बने इस पथ पर ।

फिर भी है एकाकी तू ,
चलता अपनी धुन में तू इस पथ पर ।

खोया खोया अपने एकाकीपन में ।
कुछ अपनी कुछ पथ की उलझन में ।

हाँ एकाकी तू , बस एकाकी तू ।
तू अपने इस जीवन पथ पर ।

……विवेक दुबे©….

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