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20 Apr 2025 · 3 min read

स्क्रीन में गुम होता बचपन

“मम्मी, मेरा फोन कहाँ है?”
“थोड़ा गेम खेल लूं ना, प्लीज़!”
“खाना तभी खाऊँगा जब वीडियो चलाओगे!”

अगर आपके घर में भी ये आवाज़ें रोज़ गूंजती हैं, तो सतर्क हो जाइए — ये सिर्फ बच्चों की ज़िद नहीं, बल्कि एक खामोश खतरे की आहट हैं — मोबाइल की लत। आज के डिजिटल युग में मोबाइल एक ज़रूरत बन गया है, लेकिन जब यही ज़रूरत बच्चों के लिए लत बन जाए, तो यह उनके बचपन को धीरे-धीरे निगलने लगती है। यह लत उनके मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव को हिला सकती है।

ऐसे लगती है मोबाइल की लत
बच्चों की जिज्ञासा और मोबाइल की रंग-बिरंगी, चलायमान स्क्रीन का मेल बेहद आकर्षक होता है। यह आकर्षण धीरे-धीरे आदत बनता है और फिर लत।
मोबाइल न मिलने पर बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है, गुस्सा करता है और समाज से कटने लगता है।

इन लक्षणों से पहचानें:
हर वक्त मोबाइल की मांग
खेल-कूद, पढ़ाई या दोस्तों से दूरी
खाना खाते समय वीडियो की ज़िद
संवाद में कमी और अकेले रहना पसंद करना
नींद की कमी और व्यवहार में चिड़चिड़ापन

वैज्ञानिक चेतावनी:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) के अनुसार:
2 साल से कम उम्र: स्क्रीन टाइम बिल्कुल नहीं
2 से 5 साल: अधिकतम 1 घंटा (वह भी अभिभावकों की निगरानी में)
6 साल और ऊपर: संतुलित, सीमित और शिक्षाप्रद उपयोग आवश्यक

बचपन पर असर
1. मानसिक और बौद्धिक विकास में गिरावट:
एकाग्रता की कमी
कल्पना और सोचने की शक्ति में रुकावट
रचनात्मकता और तार्किक क्षमता का क्षरण

2. भाषा और संवाद कौशल में कमी:
सीमित शब्दावली
संवाद में झिझक
सामाजिक व्यवहार में गिरावट

3. शारीरिक और सामाजिक गतिविधियों का ह्रास:
बाहर खेलने की आदत का टूटना
मोटापा और आंखों से जुड़ी समस्याएँ
टीमवर्क, धैर्य और सहनशीलता का अभाव

भावनात्मक असंतुलन
मोबाइल से मिलने वाली झूठी डिजिटल संतुष्टि, सोशल मीडिया की तुलना, और गेम्स की उत्तेजना बच्चों को नकारात्मक प्रतिस्पर्धा, आत्महीनता और अवसाद की ओर धकेल सकती है। धीरे-धीरे आत्मविश्वास कमजोर होता है और वे आभासी दुनिया में खोने लगते हैं।

दीर्घकालिक परिणाम:
पढ़ाई में गिरावट
सामाजिक अलगाव
नशे जैसी आदतें
मानसिक और भावनात्मक समस्याएँ

समाधान: बचपन की रक्षा के लिए कुछ कदम
1. डिजिटल अनुशासन लाएं:
मोबाइल इस्तेमाल के लिए स्पष्ट समय-सीमा तय करें। भोजन, पढ़ाई और सोने के समय मोबाइल पूरी तरह बंद रखें।

2. रचनात्मक विकल्प दें:
बच्चों को चित्रकारी, संगीत, लेखन, नाटक और विज्ञान प्रयोग जैसे रचनात्मक कार्यों से जोड़ें।

3. खेल को दिनचर्या में शामिल करें:
हर दिन कम से कम 1 घंटा आउटडोर गतिविधि ज़रूरी करें — जैसे साइकिल चलाना, दौड़ना, या पार्क में खेलना।

4. साप्ताहिक “नो मोबाइल डे” अपनाएं:
सप्ताह में एक दिन पूरा परिवार मिलकर मोबाइल के बिना समय बिताए — जैसे बोर्ड गेम, पिकनिक या कहानी सत्र।

5. किताबों और कहानियों से जोड़ें:
बच्चों को पुस्तकालय, बाल पत्रिकाओं और रोचक कहानियों से जोड़ें।

6. खुद उदाहरण बनें:
यदि अभिभावक हर समय मोबाइल में व्यस्त रहेंगे, तो बच्चों से बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? खुद समय प्रबंधन का पालन करें।

बचपन को बचाइए
मोबाइल एक उपकरण है, जीवन नहीं है।
बचपन कल्पना, अनुभव, रिश्तों और संवाद से बनता है, न कि स्क्रीन की कृत्रिम चमक से।
उन्हें ऐसा बचपन दीजिए जिसमें असली हँसी हो, मिट्टी की खुशबू हो, सच्चे दोस्त हों और दिल से कही-सुनी कहानियाँ हों। आज उन्हें मोबाइल की लत से बचाइए — ताकि कल वे खुद को पहचान सकें।

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