मैं तुम्हें याद करता ही नहीं,

मैं तुम्हें याद करता ही नहीं,
महसूस करता हूँ,,,,
हर पल, हर क्षण, हर जगह
मैं तुम्हें बाहर ही नहीं,
भीतर भी महसूस करता हूँ,,,
आत्मा में, गहरी संवेदना में,
और साँसों की गहराई में,
मैं तुम्हारा खयाल करता ही नहीं,
मैं डूबता हूँ, खुद के भीतर देखता हूँ,
मेरे शरीर के अंदर तुम्हें तैरते हुए,
परियों की तरह उड़ते हुए,,,
मैं तुम्हें याद करता ही नहीं,
महसूस करता हूँ,,,,
हर पल, हर क्षण, हर जगह…….
तुम ही हो… तुम ही हो… तुम ही हो…
मुझमें भी तुम ही हो… तुम ही हो…
मैं नहीं… मैं नहीं… मैं नहीं…
शुभम आनंद मनमीत