ईश्वर के दरबार में

ईश्वर के दरबार में,शीश झुकाकर भक्त।
पाते श्री वर की कृपा,शोभित करते वक्त।।
ईश्वर के दरबार का, पावव बहुत विधान।
द्वेष अहम को त्याग कर,हो प्रभुवर का ध्यान।।
श्रद्धा के सत भाव से,करते जो प्रभु ध्यान।
ईश्वर करके सत कृपा,शोभित करें विधान।।
ईश्वर के दरबार में,होते सभी समान।
पूजा हो उनकी सफल,रखें इसे जो ध्यान।।
ईश्वर रखता चाह मधु,हर्षित रहे समाज।
सोच समझ करता चले,अपने दैनिक काज।।
लोभ अर्थ अरु दर्प का,करे हृदय से त्याग।
निश्छल भावों से सदा,रखे सृष्टि अनुराग।।
प्रकृति हनन से दूर रह,रखे जगत का ध्यान।
माया के अति लोभ में,तोड़े नहीं विधान।।
ओम प्रकृति के प्रेम का,हो जग में संचार।
शोभित सारा जग रहे,दूरी रहें विकार।।
डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
शिक्षक व साहित्यकार
तिलसहरी,कानपुर नगर