रेड- हास्य व्यंग्य कविता रचनाकार अरविंद भारद्वाज
एक अमीर सेठ के घर, आयकर विभाग से अधिकारी आया
आयकर अधिकारी ने स्वयं को, दूर की भूआ का रिश्तेदार बताया
पहचान गोपनीय रखी अपनी, धीरे-धीरे मेलजोल बढ़ाया
मिलने के बहाने उसने सभी पर, शब्दों का मोहजाल फैलाया।
सबसे पहले घर में उसने, बुजुर्ग से पहचान बढ़ाई
धन दौलत घर में है कितनी, पूछनी उसने चाही
बूढ़ा था चालाक बहुत, बातों में उसे घुमाया
भैंस, गाय और बूढ़े बैल का, किस्सा उसे सुनाया
फिर से कोशिश करके उसने, अम्मा को मक्खन लगाया
कितना सोना घर में उनके, पूछना उससे चाहा
अम्माँ बोली फूटी कोड़ी , घर में बहु न लाई
खा गई घर का सारा राशन, घर में टोटा छाया
फिर अधिकारी ने बेटों पर, अपनी छड़ी घुमाई
पूछा उनसे खोद-खोद कर, गाड़ी कहाँ से आई
लोन लिया घर गिरवी रखकर, बेटे ने उसे बताया
माँग लिया धन अधिकारी से, अपना हाथ फैलाया
घूम रहा था आंगन में, धुआँ दी उसे दिखाई
अधजली नोटों की गड्ढी, कोने में उसको पाई
पता चला ऑफिस कर्मी ने, पहले ही फोन घुमाया
उसके आने का चिट्ठा, पहले से सबको सुनाया
फेल हो गई रेड ये उसकी, गुस्सा उसको आया
घर में भेदी छुपे हुए है, घर-घर जाकर सुनाया
बात टके कि उसने कह दी, समझ लो तुम ये भाया
जिसकी जग में पहचान नहीं, भ्रष्ट वही है पाया
© अरविंद भारद्वाज