“मुझे सब पता चला”

तुम रोए तो मुझे पता चला,
तुम टूटे तो मुझे पता चला।
तुम बेचैन रहे तो मुझे पता चला,
तुम खोए तो मुझे पता चला।
तुमको ये पता ही नहीं चला
कि मुझे सब पता चला।
तुमने कुछ कहा नहीं, फिर भी मैं समझ गयी,
तुम्हारे खामोश लबों का हर राज़ पढ़ गयी।
तुम मुस्कुराए भी तब दर्द छुपा रहे थे,
मैं उन हँसियों में भी आँसू गिन रही थी।
तुमको ये पता ही नहीं चला
कि मुझे सब पता चला।
तुम दूर गए तो साँसें थमने लगी,
हर लम्हा तुम्हारी कमी कहने लगी।
तुम समझे नहीं कि मैं क्या महसूस करती हूँ,
पर हर एहसास में मैं बस तुम्हें ही पढ़ती हूँ।
तुमको ये पता ही नहीं चला
कि मुझे सब पता चला।
तुमको ये लगा कि तुम अकेले सहते रहे,
पर मैं भी हर रोज़ तेरे दर्द में बहती रही।
अब कैसे कहूँ ये दिल क्या-क्या सहा,
कि तुझे क्या लगा, और मुझे क्या-क्या पता चला।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”