#मुक्तक
#मुक्तक
😞 एहसानफ़रामोश नस्ल पर।
(प्रणय प्रभात)
जो थमाती रहीं बत्तियां, तख्तियां।
आलिमों ने भुला दीं वहीं उंगलियां।।
वक़्त के साथ किरदार धुंधले हुए।
दीद तक को तरसती रही सीढ़ियां।।
🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔
संपादक
न्यूज़&व्यूज
#मुक्तक
😞 एहसानफ़रामोश नस्ल पर।
(प्रणय प्रभात)
जो थमाती रहीं बत्तियां, तख्तियां।
आलिमों ने भुला दीं वहीं उंगलियां।।
वक़्त के साथ किरदार धुंधले हुए।
दीद तक को तरसती रही सीढ़ियां।।
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संपादक
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