अनकही दास्तां

अनकही दास्तां
हर किताब के भीतर एक अनकही दास्तां होती है,
कभी किसी लेखक की अधूरी मोहब्बत,
तो कभी किसी पाठक की पूरी ज़िंदगी।
वो बोलती नहीं, पर महसूस होती है।
वो चुप रहती है, पर बहुत कुछ कह जाती है।
अनकही दास्तां
हर किताब के भीतर एक अनकही दास्तां होती है,
कभी किसी लेखक की अधूरी मोहब्बत,
तो कभी किसी पाठक की पूरी ज़िंदगी।
वो बोलती नहीं, पर महसूस होती है।
वो चुप रहती है, पर बहुत कुछ कह जाती है।