ऐसे दिन दिखला रहे, हे कलयुग के नाथ
ऐसे दिन दिखला रहे, हे कलयुग के नाथ |
सास छोड़ कर भागती, जामाता के साथ |
जामाता के साथ, रही बेटी बिन ब्याही |
खुलता प्रेम प्रसंग, पुत गयी मुख पर स्याही |
कहें प्रेम कवि राय,समय कब बदले कैसे |
लोग बदलते रंग, लगे गिरगिट हों ऐसे |
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम “