उपमा आर्य "सहर "व्यक्तित्व एवं कृतित्व

“उपमा आर्य सहर” -व्यक्तित्व एवं कृतित्व,
उपमा आर्य “सहर” साहित्य जगत की जानी-मानी शख्सियत है| उनकी बचपन से साहित्य में रुचि रही है,वे कुशल शिक्षिका होने के साथ-साथ उच्च कोटि की साहित्यकार भी हैं |
कुशल गृहणी का दायित्व वे भली भांति संभाल रही हैं |उनके पति आर्य दीनबंधु” सरल ” एक योग्य वकील हैं, तथा सेवानिवृत्ति लेखाधिकारी रह चुके हैं| उनका साहित्य सृजन उपमा जी की प्रसिद्ध में चार चांद लगता है| साहित्यिक दंपति की सरलता सादगी व मृदु वाणी सबका मन हर लेती है|
मेरा परिचय नेपाल की साहित्यिक यात्रा के समय एक वर्ष पूर्व हुआ था| उपमा जी कार्यक्रम के सिलसिले में मेरे पास ब्लड बैंक सिविल हॉस्पिटल आई थी| उनका व्यक्तित्व हमारे हृदय को छू गया| सरलता, सादगी, प्रभावशाली मातृशक्ति की मधुर छवि मेरे मन में बस गई |जब हम परिवार सहित साहित्यिक यात्रा पर निकले,हम सब का सानिध्य और प्रगाढ़ हो गया| मैं उन्हें आदर पूर्वक दीदी कह कर संबोधित करने लगा और वह भी मुझे भाई तुल्य सम्मान प्रदान करने लगी| नेपाल यात्रा हम सब ने साथ में की| कभी व्यंग्य कभी हास्य रस में डूबे मेरे सहयोगी हास्य कवि डॉ अरविंद कुमार झा जी अक्सर हम लोगों को हंसाते रहे, वह यात्रा अविस्मरणीय हो गयी|
उपमा दीदी की साहित्यिक यात्रा में मातृत्व, वात्सल्य व समसामयिक विषयों की गहरी पीड़ा झलकती है| अपने जीवन साथी को कसौटी पर परखने और सुख मय जीवन जीने की कला में वे माहिर हैं| उदाहरण के तौर पर यह शेर देखिए,
” तुमको मुद्दत से जी रहा हूं मैं,
तुमको छुप छुप के देखता हूं मैं,
हर कदम पर हूं साथ मैं तेरे,
कौन कहता है कि बेवफा हूं मैं |”
मां एवं मातृत्व की छाया उन पर गहरा प्रभाव डालती है | यह उनके व्यक्तित्व से भी परि लक्षित होता है, वह गुनगुना उठती हैं,
” मां के होने से बदल जाता है घर का मौसम, खुशनुमा होता है जीवन में सफर का मौसम,
मेरे एहसास में है सूरत मां की
मेरी पूजा में उसी के है असर का मौसम|”
उपमा जी का दर्शन अत्यंत उच्च कोटि का है, वह रोचक है उपमा की जिंदगी का दर्शन समझाते हुए कहती हैं,
” जिंदगी धोखा करेगी, झूठा ही वादा करेगी,
हम तो मर कर जी उठेंगे, मौत अपना क्या करेगी, मुश्किलों से गर जो भागे, और यह पीछा करेगी, ”
न्याय व्यवस्था पर चोट करते हुए व्यंग्य करती हैं,
और सियासत को इसका जिम्मेदार मानती है |
“अंधी बहरी हो गई अपनी अदालत,
सब गुनाहों के है पीछे सियासत,”
डिजिटल युग में जब सभी खामोश रह कर उस युग को याद करते हैं, जब चिट्ठियां लिखी जाती थी, भावनाओं का समुद्र हिलोरे लेता था, चिट्ठियों का इंतजार होता था,
उपमा जी लिखती हैं,
“कोई अब लिखता नहीं फिर से वो प्यारी चिट्ठियां, इसलिए तो है तरसती यह बिचारी चिट्ठियां, भावनाओं के समंदर अब नहीं उठते हैं क्यों,
हो गए डिजिटल सभी खामोश प्यारी चिट्ठियां,”
उपमा आर्य परिस्थितियों से विद्रोह करती हैं, उन्हें परिस्थितियों के सामने झुकना गवारा नहीं है,
“चीर आंधी को निकलना चाहिए,
अब परिंदों को न रुकना चाहिए,”
दूसरी गजल में वह कहती हैं,
“रात दिन थक कर भी जो मिलता नहीं,
इतनी महंगी हो गई है रोटियां,”
युवावस्था के प्रेम व पारिवारिक मजबूरी को भी उपमा जी ने अपनी गजलों में भरपूर स्थान दिया है,
” तुम्हारी लगी है नजर धीरे-धीरे,
हुए खुद से हम बेखबर धीरे-धीरे
नहीं मिल सकेंगे तुम्हें रोज अब हम,
बढे हम पे पहरे इधर धीरे-धीरे,”
जमाने की ठोकरे खाकर जब मनुष्य सीखता है, उसे अनुभवको उपमा जी ने बखूबी बयां किया है,
” राज सबको बताना नहीं चाहिए,
चीर कर दिल दिखाना नहीं चाहिए,
है बहुत मतलबी यह जमाना सनम,
हाथ सबसे मिलाना नहीं चाहिए,”
नीतू आनंद प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित गजल संग्रह “न जाने कब” उपमा जी द्वारा प्रस्तुत खूबसूरत गजलों का एक हसीन गुलदस्ता है, उपमा जी से आशा है कि इसी तरह साहित्य को समृद्ध करती रहेगी,अपने मधुर भावों से,अनुभवों से हम सब का मार्गदर्शन करती रहेगी |
मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि, वह सपरिवार स्वस्थ रहें, खुश रहें,दीर्घायु हों, वअपना नव सृजन करते हुए हम सबको गौरव की अनुभूति कराती रहें
|जय हिंद! जय भारत!
समीक्षक- डॉक्टर प्रवीण कुमार श्रीवास्तव “प्रेम “