हे स्त्री

हे स्त्री
छली गई हो तुम आदि काल से
अपने स्वार्थ के लिए
कभी यौवना प्रेयसी बनकर
सौन्दर्य के शब्दों में ढलकर
श्रृंगार के मनमोहक शब्दों से
बसंत की बहार बनकर
लूटी जाती रही हो सदा
ऋतुराज से रति बनकर
मनोरंजन की गाथा लिख दी
मंडी में बिठा दी वैश्या बनाकर
नगर वधु का योगदान भुलाया
आम्रपाली बसंत सेना को गाया
किसी राजनीति के पद पर कठपुतली बनकर
या सत्ता के गलियारों में चांदनी बनाकर
क्षमा कीजिए कड़वा है पाठ्यक्रम का ये बाबेला
पत्नी मां बहन पुत्री का झूठा झमेला
कहां है रानी चेनम्मा, कित्तूर कहानी
कहां है राजमणि नीरा प्रीति की कुर्बानी
काकोरी का हथियार जखीरा या फांसी का बदला
कहां गया वो बेला का भाई अलबेला
क्रांति की मशालों में तुमने भी सर्वस्व लुटाया है
करके हत्या अपने सुहाग की राष्ट्र निधि को बचाया है
पति बेटा परिवार के संग अपनी आहुतियां भी दे दी
अरे राष्ट्र हेत लिखी चेतना जाति प्रथा को खुली चुनौती दी
झांसी की समाधि लिखी तो बगावत प्रीतम ने की
राज नीति में एक नहीं कई विभूतियां तेरी ही
साहित्य सजाया भक्ति को गाया
त्याग से समर्पण अमर बनाया
लेकिन सब गया बिसराया मन को उलझाया
तभी तो आज तक बलात्कार पर कानून न आया
जासूस बनी हो, हाइजैक बचाया प्राणों को भी वार दिया
लिखा गया बस इतना ही सौंदर्य को विस्तार दिया
अरे कंजका बन खुश हो जाती
कहीं सदा सुहागन बन इठलाती
फैशन की नंगी दौड़ में बन शिकार तुम ही जाती
मॉडल या बॉलीवुड की सच्चाई कहां कही जाती
तुम स्वयं बिकती हो पर बेची जाती
अपनी प्रशंसा में बंधकर खो जाती
अरे जगाओ अपनी प्रज्ञा को, शक्ति समाहित शिवा तुम्हीं हो
अरे जगाओ अंतर्मन अपने शक्ति पुंज की ज्वाला तुम ही हो
हे नारी स्वयं को जान अपनी आत्मा पहचान
अपना परिचय दे जो सिखलाता आन का मान
दो स्वयं को तुम सम्मान, इस प्रकृति की तुम हो प्राण
क्रांति ज्वालाएं अखंड तुम्हारी, प्रखर शिखर अग्नि समान
मातृ शक्ति तुम भविष्य प्रसूता, कोई क्षेत्र न तुमसे अछूता
हे स्त्री जगाओ चेतना अंतरात्मा परमात्मा की तुम भी आहूता