16.4.25
16.4.25
Muzare.a musamman aKHrab makfuuf mahzuuf
maf’uul faa’ilaat mufaa’iil faa’ilun
221 2121 1221 212
हर काम हो रहा है बड़ी बेदिली के साथ
हम तंग़ आ चुके हैं यहाँ ज़िन्दगी के साथ
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देखे थे हमने रोज बहारों के सपने जो
टूटे हैं वो सभी मेरी दरियादिली के साथ
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तुमने लिख़ा था नाम से मेरे जो ख़़त कभी
सब जर्द हो गए यहाँ पे सादगी के साथ
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ख़ुदग़र्ज भीड़ पे किसी सूरत नज़र रखें
खो जाते हैं ये देखते ही तीरगी के साथ
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