गुरु नानक देव जी। ~ रविकेश झा।
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सब आशा करते हैं कि आप सभी मित्र अच्छे और पूर्ण स्वस्थ होंगे। और निरंतर ध्यान में प्रवेश कर रहे होंगे लेकिन बस मेरे कहने से क्या होगा साहब जब तक आपको नहीं लगेगा कि ध्यान क्यों करना चाहिए ध्यान से क्या लाभ होगा क्योंकि आप कोई भी काम करते हैं तो कोई कामना इच्छा देख कर आप ध्यान को भी आप एक कामना के रूप में देखते हैं तो शुरुआत में तो ठीक है आप देख सकते हैं लेकिन कामना को भी देखना होगा आंख को केंद्रित करना होगा शुरुआत में आप तो कामना के उद्देश्य से ही आओगे ध्यान में ताकि मुक्ति मिले मोक्ष निर्वाण हो जाऊ सब कामना है लेकिन ध्यान में हम एक ऐसे अवस्था में आते हैं जब सभी कामनाओं को देखना पड़ता है मोह को भी लालच को भी वासना को भी ध्यान से देखना होता है कि हम कर क्या रहे हैं और किसके लिए इससे लाभ किसका होगा हानि किसका होगा, कर्म कौन कर रहा है कर्ता कौन है कारक क्या है क्यों पर जोर देना होता है। लेकिन हम तो परमात्मा को पाने के लिए ध्यान करते हैं ध्यान में बैठोगे और कल्पना करोगे कि जल्दी से भगवान दिख जाए कल्पना अपने हिसाब से करोगे वस्त्र पहना दोगे मुकुट धारण करवा दोगे कुछ शस्त्र के साथ आप ध्यान में करते क्या हो ध्यान सबके वश की बात नहीं ध्यान को लोग भक्तियोग बना दिए हैं बस, मैने एक संत को टीवी पर प्रवचन देते हुए सुना कि आंख बंद करो आपको वृंदावन धाम ले चलते हैं पहले तयारी करो आंख बंद करो कल्पना करो की भगवान ऐसे है ऐसे वस्त्र है ऐसे शस्त्र है ऐसे बैठे हुए हैं कल्पना को ध्यान कहते हैं ध्यान तो कल्पना से परे है ध्यान हमें स्पष्टता के ओर ले जाता है बल्कि अंधभक्ति जटिलता के ओर क्योंकि हम सब धारण पकड़ लिए उंगली दिखाने वाले को ही बस भगवान समझते हैं और दृष्टा को हम नहीं देखना चाहते बस दृश्य पर निर्भर होना चाहते हैं हमें दृश्य कौन दिखा रहा है ये हमें नहीं जानना है बस जो भौतिक दिख रहा है उसे सत्य मान लेते हैं और सोचते हैं कि हम सब कुछ जान लिए हैं भगवान को भी जान लिए हैं और फिर भौतिक दृष्टि से बस भौतिक बस एक गुण को सत्य मान लेते हैं जो हमें आसानी से दिखता है वह सत्य नहीं है दृश्य के पीछे जो दृष्टा हैं वही सत्य है साहब लेकिन हम भौतिक से परे नहीं उठ पाते और क्योंकि ये आंख बस दृश्य देखता है दृष्टा के लिए तीसरी आंख पर प्रयोग करना होगा उसके लिए पहले दोनों आंखों को पूर्ण उपयोग करना होगा, बुद्ध कहते थे अपने शिष्य से पहले बाहर से पूर्ण परिचित हो जाओ पहले इस जन्म पहले जो दिख रहा है उसे जान लो पहले दोनों आंख से देखो नहीं तो ऐसे में न भीतर रहोगे न बाहर पहले जहां हो वही से शुरू करो पहले बाहर देखो पूरा जान लो तब स्वयं भीतर के ओर आने लगोगे। लेकिन बुद्ध पुरुष को हम अनदेखा कर देते हैं हमें लगता है हमसे कुछ छीन लिया जाएगा हम मर जायेंगे मन ऊपर नीचे करता रहता है ऐसे में हम जटिलता के ओर बढ़ जाते हैं बाद में समय नहीं मिलता समय मिलता है तो ऊर्जा नहीं मिलता हम मूर्छित होते जाते हैं। ध्यान का अर्थ है हमें एक करना जोड़ना लेकिन पहले स्वयं को तोड़ कर देखना होता हर भाग को बारीकी से निरीक्षण करना होता है फिर हम स्वयं एक हो जाते हैं प्रकृति में मिल जाते हैं अपने स्वभाव को पहचान जाते हैं अपने कर्तव्य से परिचित होते हैं। मैं पहले भी काम को कर्तव्य कहा है प्रेम को स्वभाव और ध्यान को लक्ष कहा है। लेकिन हम कुछ बातें दिमाग़ में डाल लेते हैं कुछ नकारात्मक विचारों को जन्म दे देते हैं और सोचते हैं हम तो बुद्धिमान है न, हमसे बड़ा कोई नहीं बस हम ही सही है यही सब विचार में हम जीते हैं दूसरों के प्रति घृणा क्रोध ईर्ष्या कैसे पैदा होता है जन्म से तो नहीं होता जन्म से हम सब एक जैसे होते हैं लेकिन जैसे बाकी शरीर चक्र का निर्माण होता जाता है हमें बुद्धि बढ़ता जाता है सात शरीर यानी 49 से 50 तक हमें समाधि ले लेना चाहिए शरीर के हिसाब से हम 49 तक या 40 वर्ष तक बुद्ध हो सकते हैं अगर हम बुद्धि को छोड़ दिया तो नहीं तो 60 साल में भी प्रौढ़ अवस्था नहीं होगा हम बच्चे या क्रूर साबित होंगे और जीवन मृत्यु को आवाहन कर देगा और अंत तक बस मूर्छा और बेहोशी या कुछ भौतिक सुख वस्तु ही हाथ लगेगा लेकिन मोक्ष नहीं मुक्ति नहीं। यही तो जन्म जन्म से चल रह है भाई सही कह रहा हू आपको संदेह होगा मुझ पर लेकिन 84 लाख योनियों में हम भटक रहे हैं और भटकेंगे बहुत जीव हैं यहां पृथ्वी पर बहुत सूक्ष्म बहुत अति सूक्ष्म बहुत है ऐसे जो जन्म लेता है मर जाता है फिर नए जन्म में भाव हमें मूर्छित कर देता है अगर हम भावना और विचार के प्रति पूर्ण सचेत न हुए तो हम परे नहीं उठ पाएंगे और बस जटिलता पैदा होगा और निरंतर दुख घृणा क्रोध हाथ लगेगा।
यदि हमें ध्यान के महत्व को समझना है जानना है तो जहां हो वही रहो अंदर मत आओ भीतर की चिंता ही छोड़ दो आप, पहले जहां हो वही से शुरू करो देखो, बाहर जा रहा है दृष्टि तो देखो पूर्ण देखो, शरीर में अभी आप होंगे आप पहले शरीर को देखे धन्यवाद देना होगा, कृतज्ञता प्रकट करना होगा श्रद्धा रखना होगा, भक्तियोग का यही अर्थ है पूर्ण रखो श्रद्धा, लेकिन हम भक्तियोग को बस किसी एक भौतिक तक सीमित कर दिए हैं निष्ठा पूरा रखना होता है उस परमात्मा के लिए जो हम सब के भीतर देख रहे हैं उनके प्रति, किसी गुरु के प्रति सच्ची भक्ति नहीं हो सकता है मन कल्पना करता है शरीर में न सही मन में, कुछ न कुछ विचार, इसीलिए मैं आस्तिकता पर विशेष जोर नहीं देता हूं भगवान बुद्ध भी और ओशो जी भी नास्तिकता को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि जीवन में पूर्ण स्पष्टता आ सके, ताकि हम पूर्ण आस्तिक हो सके, ताकि हम पूर्ण हो सके, मान के चलो आप मान रहे हो कि कृष्ण जी या अन्य भगवान है फिर आप खुश होगे क्योंकि अभी आप अवचेतन मन में हो मान रहे हो फिर मन के हिसाब नहीं हुआ तो दुखी होगे क्रोध आएगा, आस्तिकता के चादर ओढ़ कर हम बस जटिलता को बढ़ावा देंगे, आनंद ध्यान प्रदान करता है नास्तिकता की सीढ़ी चढ़ना पड़ता है पहला क़दम नास्तिकता पर रखना पड़ता है ताकि हम नास्तिक और आस्तिक दोनों को जान लूं और फिर जानने वाले को भी फिर आप एक हो जाओगे आनंदित हो जाओगे परमात्मा के भी साक्षी हो जाओगे और दुख सुख क्रोध घृणा से परे हो जाओगे, लेकिन इसके लिए ध्यान को महत्व देना होगा। आज हम बात कर रहे हैं नानक देव जी के बारे में दोस्तों एक महान दार्शनिक, विद्वान, महान विचारक, प्रेमी, ध्यानी आप उनके जैसा और नहीं खोज सकते जो यज्ञ तप से अधिक प्रेम करुणा गीत को महत्व दिए। उनके जैसा महान बुद्ध पुरुष मिलना मुश्किल है उनके जैसे ज्ञानी कोई और नहीं। नानक जी में आप प्रेम करुणा शांति उनके महान विचारक और कोई नही। बुद्ध में बुद्धिमत्ता को महत्व दिया गया है लेकिन भगवान नानक में आप प्रेम करुणा अधिक देखोगे और उनके द्वारा बताया गया ध्यान सूत्र हमें भीतर को जोड़ती है एक करती है। भगवान नानक देव जी हमें एक करने के लिए अपने विचार को प्रकट किए उनके विचार और उनके ध्यान सूत्र खास कर हमें बहुत प्रभावित किए उनके जैसा महान बुद्ध पुरुष और कोई नहीं आप उनके विचार को अगर जागरूकता के साथ पढ़ेंगे तो आप स्वयं ऊपर उठने लगेंगे लेकिन एक शर्त है कि बिना शर्त के पढ़ना होगा अपने भीतर कचरे को बाहर निकालना होगा नहीं तो बस और कचरा जमा हो जायेगा साहब, ध्यान बिना शर्त के है जागरूकता के साथ कनेक्ट रहकर पढ़ना होगा। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी गांव में हुआ था, जिसे अब वर्तमान पाकिस्तान ने ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जिसने एक नए आध्यात्मिक युग की शुरुआत को चिह्नित किया। छोटी सी उम्र से ही नानक ने गहन चिंतन और सत्य की खोज के लक्षण प्रदर्शित किए। वह अपने जिज्ञासु स्वभाव के लिए जाने जाते थे और ध्यान और चिंतन में बहुत समय बिताते थे। उन्होंने जप तप को गीत के तरह गए, गंभीरता से नहीं उनमें परमात्मा के प्रति श्रद्धा शुरू से था, भगवान नानक गीतों के माध्यम से प्रभु को पाया उन्होंने प्रेम और संगीत को भीतर ले लिया बाहर नहीं रहने दिया वह संगीत के माध्यम से सत्य को पी गए पूरा, उन्होंने प्रेम को विशेष महत्व दिए। ओशो कहते हैं वह देर रात तक गीत गाते रहते थे मां उनको टोकती थी रोकती थी लेकिन उनके परमात्मा के प्रति प्रेम अद्भुत था, ओशो कहते हैं एक अंधेरी रात। भादों की अमावस। बादलों की गड़गड़ाहट। बीच-बीच में बिजली का चमकना। वर्षा के झोंके। गांव पूरा सोया हुआ। बस, नानक के गीत की गूंज। रात देर तक वे गाते रहे। नानक की मां डरी। आधी रात से ज्यादा बीत गई। कोई तीन बजने को हुए। नानक के कमरे का दीया जलता है। बीच-बीच में गीत की आवाज आती है। नानक के द्वार पर नानक की मां ने दस्तक दी और कहा, बेटे! अब सो भी जाओ। रात करीब-करीब जाने को हो गई। नानक चुप हुए। और तभी रात के अंधेरे में एक पपीहे ने जोर से कहा, पियू-पियू। नानक ने कहा, सुनो मां! अभी पपीहा भी चुप नहीं हुआ। अपने प्यारे की पुकार कर रहा है, तो मैं कैसे चुप हो जाऊं? इस पपीहे से मेरी होड़ लगी है। जब तक यह गाता रहेगा, पुकारता रहेगा, मैं भी पुकारता रहूंगा। और इसका प्यारा तो बहुत पास है, मेरा प्यारा बहुत दूर है। जन्मों-जन्मों गाता रहूं तो ही उस तक पहुंच सकूंगा। रात और दिन का हिसाब नहीं रखा जा सकता है। नानक ने फिर गाना शुरू कर दिया।
नानक ने परमात्मा को गा-गा कर पाया। गीतों से पटा है मार्ग नानक का। इसलिए नानक की खोज बड़ी भिन्न है। पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि नानक ने योग नहीं किया, तप नहीं किया, ध्यान नहीं किया। नानक ने सिर्फ गाया। और गा कर ही पा लिया। लेकिन गाया उन्होंने इतने पूरे प्राण से कि गीत ही ध्यान हो गया, गीत ही योग बन गया, गीत ही तप हो गया।
एक दिन नदी के किनारे रात के अंधेरे में, अपने साथी और सेवक मरदाना के साथ वे नदी तट पर बैठे थे। अचानक उन्होंने वस्त्र उतार दिए। बिना कुछ कहे वे नदी में उतर गए। मरदाना पूछता भी रहा, क्या करते हैं? रात ठंडी है, अंधेरी है! दूर नदी में वे चले गए। मरदाना पीछे-पीछे गया। नानक ने डुबकी लगाई। मरदाना सोचता था कि क्षण-दो क्षण में बाहर आ जाएंगे। फिर वे बाहर नहीं आए।
दस-पांच मिनट तो मरदाना ने राह देखी, फिर वह खोजने लग गया कि वे कहां खो गए। फिर वह चिल्लाने लगा। फिर वह किनारे-किनारे दौड़ने लगा कि कहां हो? बोलो, आवाज दो! ऐसा उसे लगा कि नदी की लहर-लहर से एक आवाज आने लगी, धीरज रखो, धीरज रखो। पर नानक की कोई खबर नहीं। वह भागा गांव गया, आधी रात लोगों को जगा दिया। भीड़ इकट्ठी हो गई।
नानक को सभी लोग प्यार करते थे। सभी को नानक में दिखाई पड़ती थी कुछ होने की संभावना। नानक की मौजूदगी में सभी को सुगंध प्रतीत होती थी। फूल अभी खिला नहीं था, पर कली भी तो गंध देती है! सारा गांव रोने लगा, भीड़ इकट्ठी हो गई। सारी नदी तलाश डाली। इस कोने से उस कोने लोग भागने-दौड़ने लगे। लेकिन कोई पता न चला। तीन दिन बीत गए। लोगों ने मान ही लिया कि नानक को कोई जानवर खा गया। डूब गए, बह गए, किसी खाई-खड्ड में उलझ गए। मान ही लिया कि मर गए। रोना-पीटना हो गया। घर के लोगों ने भी समझ लिया कि अब लौटने का कोई उपाय न रहा।
और तीसरे दिन रात अचानक नानक नदी से प्रकट हो गए। जब वे नदी से प्रकट हुए तो जपुजी उनका पहला वचन है। यह घोषणा उन्होंने की।
कहानी ऐसी है–कहता हूं, कहानी। कहानी का मतलब होता है, जो सच भी है, और सच नहीं भी। सच इसलिए है कि वह खबर देती है सचाई की; और सच इसलिए नहीं है कि वह कहानी है और प्रतीकों में खबर देती है। और जितनी गहरी बात कहनी हो, उतनी ही प्रतीकों की खोज करनी पड़ती है।
नानक जब तीन दिन के लिए खो गए नदी में तो कहानी है कि वे प्रकट हुए परमात्मा के द्वार में। ईश्वर का उन्हें अनुभव हुआ। जाना आंखों के सामने प्यारे को, जिसके लिए पुकारते थे। जिसके लिए गीत गाते थे, जो उनके हृदय की धड़कन-धड़कन में प्यास बना था। उसे सामने पाया। तृप्त हुए। और परमात्मा ने उन्हें कहा, अब तू जा। और जो मैंने तुझे दिया है, वह लोगों को बांट। जपुजी उनकी पहली भेंट है परमात्मा से लौट कर। गुरु नानक देव जी के प्रारंभिक जीवन में कई चमत्कारी घटनाएं हुई, जो एक आध्यात्मिक नेता के रूप में उनकी भविष्य की भूमिका का संकेत देती हैं। उन्होंने उस समय के धार्मिक और सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी, समानता और करुणा की वकालत की। उनकी शिक्षाओं ने ईश्वर की एकता और सत्य, प्रेम और विनम्रता पर आधारित जीवन जीने के महत्व पर जोर दिया। गुरु नानक जी ने एक दिन बेईन नदी में स्नान करते समय एक गहन आध्यात्मिक जागृति का अनुभव किया। वे तीन दिनों के लिए गायब हो गए और एक दिव्य रहस्योद्घाटन के साथ फिर से प्रकट हुए कि कोई यहां बाहरी धर्म के लिए नहीं है यहां सब मनुष्य है। इस अनुभव ने एकता, प्रेम और समानता का संदेश फैलाने के उनके मिशन को मजबूत किया। गुरु नानक की शिक्षाएं तीन प्रमुख सिद्धांतों पर केंद्रित थीं, नाम जपो, भगवान के नाम का ध्यान करें, कीरत करो ईमानदारी से जीवनयापन करें, और वंड छको, दुसरो के साथ साझा करें। इन सिद्धांतों ने एक ऐसी जीवन शैली की नींव रखी जो धार्मिक सीमाओं को पार करती थी और सार्वभौमिक भाईचारे को बढ़ावा देती थी। यात्राएं और शिक्षाएं अपने संदेश को फैलाने के लिए, गुरु नानक ने भारत और एशिया के अन्य हिस्सों में उदासी के रूप में जानी जाने वाली व्यापक यात्राएं की। इन यात्राओं के दौरान, उन्होंने विभिन्न धर्मों और पृष्ठभूमि के लोगों से मुलाकात की, आध्यात्मिकता और सामाजिक न्याय पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की। उन्होंने धार्मिक केंद्रों का दौरा किया और विभिन्न संप्रदायों के नेताओं के साथ संवाद किया, सद्भाव और समझ को बढ़ावा दिया। उनके भजन और शिक्षाएं सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में एकत्र की गई। अपनी रचनाओं के माध्यम से गुरु नानक ने जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता और अंध कर्मकांड जैसे मुद्दों को संबोधित किया। उनके छंदों ने अनगिनत व्यक्तियों को अधिक सार्थक और दयालु जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं ने दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने निस्वार्थ सेवा, विनम्रता और ईश्वर के प्रति समर्पण के महत्व पर जोर दिया। पूर्वाग्रह और असमानता से मुक्त समाज का उनका दृष्टिकोण दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करता है। उनके महत्वपूर्ण योगदानों में से एक लंगर प्रणाली की स्थापना थी, एक सामुदायिक रसोई जहां सभी पृष्टभूमि के लोग एक साथ भोजन कर सकते हैं। यह प्रथा समानता और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है, जो जाति और वर्ग की बाधाओं को तोड़ती है। गुरु नानक देव की शिक्षाएं आज की दुनिया में प्रासंगिक हैं, जो आधुनिक चुनौतियों से निपटने में मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। करुणा, समानता और सेवा पर उनका जोर सामाजिक न्याय और सामुदायिक कल्याण के समकालीन मूल्यों के अनुरूप है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने में ध्यान और आत्मनिरीक्षण के महत्व पर जोर दिया। उनकी शिक्षाएं, जिन्हें अक्सर ध्यान सूत्र या ध्यान संबंधी सूत्र कहा जाता है, स्वयं और ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। इन शिक्षाओं के माध्यम से, गुरु नानक देव जी ने व्यक्तियों को अधिक सामंजस्यपूर्ण और पूर्ण जीवन की ओर मार्गदर्शन करने का प्रयास किया। ध्यान सिख धर्म में एक केंद्रीय स्थान रखता है, जो व्यक्ति और ईश्वर के बीच एक सेतु का काम करता है। गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि ईश्वर के नाम पर ध्यान लगाना, या नाम सिमरन, किसी के वास्तविक स्वरूप को महसूस करने के लिए आवश्यक है। यह अभ्यास व्यक्तियों को आंतरिक शांति, स्पष्टता और अभ्यास व्यक्तियों को आंतरिक शांति, स्पष्टता और अपने आस पास की दुनिया की गहरी समझ विकसित करने में मदद करता है। गुरु नानक देव जी के अनुसार, ध्यान केवल एक अभ्यास नहीं बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। इसमें दैनिक गतिविधियों से स्वयं के प्रति ध्यान करना शामिल होता है जिससे व्यक्ति बाहरी परिस्थितियों की परवाह किए बिना अपने आध्यात्मिक सार से जुड़ा और केंद्रित रह सकता है अगर वह इस अभ्यास को हम जागरूक के साथ अपनाते हैं तो हम रूपांतरण हो सकते हैं साहब। गुरु नानक देव जी की ध्यान संबधी शिक्षाएं कई मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये सिद्धांत साधकों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर मार्गदर्शन के किए नानक जी ने सूत्र दिए हैं जो हम ऊपर बात कर चुके हैं अगर हम उनके ध्यान सूत्र को समझे नाम जपना उस परमात्मा को याद करना जो हमारे भीतर मौजूद हैं जो सब जगह कण कण में विराजमान है हमें उन्हें हर पल याद करना है ये सूत्र हमें अपने भीतर आने में मदद करता है। वैसे उनके हर सूत्र का एक अलग अर्थ है अगर हम ध्यान और जागरूक के साथ कनेक्ट होकर पढ़ते हैं फिर हम पहले जैसे नहीं होंगे हम रूपांतरण हो जायेंगे भगवान ओशो नानक और बुद्ध से अधिक प्रभावित थे वह उनके हर सूत्र पर प्रकाश दिए हैं वैसे नानक देव जी अद्भुत है उनमें प्रेम करुणा ज्ञान ध्यान भरा हुआ है बस पीने वाला चाहिए खोजने वाला चाहिए, नानक जी को आप अगर बिना शर्त के पढ़ते हैं सुनते हैं फिर आप पहले जैसे नहीं रहेंगे आप में स्पष्टता और जागरूकता आएगी आप भी बुद्ध हो सकते हैं बुद्ध यानी जानने का अंतिम छोर, अति चेतना तक पूर्ण पहुंच जाना और विश्राम करना एक होना दृष्टा होना है।
गुरु नानक देव जी की ध्यान संबंधी शिक्षाएं आध्यात्मिक विकास और पूर्णता चाहने वालों के लिए कालातीत ज्ञान प्रदान करती हैं। इन सिद्धांतों को अपनाकर, व्यक्ति अपने भीतर के आत्म और ईश्वर के साथ गहरा संबंध बना सकते हैं। उनकी शिक्षाएं दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं, उन्हें प्रेम, करुणा और एकता के मार्ग पर ले जाती हैं। अगर हम खोज करेंगे तभी कुछ हाथ लगेगा लेकिन पहले बाहर ये सूत्र को याद रखना होगा, हम सब खुश और कल्पना करने लगते हैं कि भीतर सही में कोई परमात्मा बैठे हैं ऐसे में बस सर दर्द और मूर्खता बढ़ेगी मानना जानना और होना ये सूत्र को भी याद रखना होगा। तीन अवस्था में से हम दो अवस्था में हमेशा रहते हैं कुछ को मानते हैं और कुछ प्रज्ञा के साथ जानते हैं लेकिन अधूरा, बस कुछ काम हो जाए, जैसे adca डिप्लोमा है, और बीसीए करे दोनों में फर्क है फिर एमसीए ऐसे ही सीढ़ी है हमें धीरे धीरे चढ़ना है साहब फिर हम संतुलन बना लेंगे और आनंदित और पूर्णता शून्यता के ओर बढ़ने लगेंगे अगर होना है तो और एक बात कहना जरूरी है। छोटे छोटे बच्चे को अभी ध्यान में न लगाएं कम से कम 9 साल या 11 से कम उम्र वाले बच्चे को दूर रखें। मैं पहले भी बोल चूक मन के कई भाग है, इसीलिए मनोवैज्ञानिक भी हैं डॉक्टर भी, हम अगर अकेले ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं तो थोड़ा सावधान, पीड़ा भी हो सकता है, इसीलिए पहले शरीर से शुरू करो धीरे धीरे नहीं तो पागल भी हो सकते हो, या कोई ध्यान केंद्र ज्वाइन कर लो या डॉक्टर के अनुमति लेकर करो, कोई दिक्कत हो तो मुझे भी बता सकते हैं आप कमेंट बॉक्स के द्वारा, या किसी मनोवैज्ञानिक डॉक्टर से सलाह लो, या अंतिम उपाय है एक ही मंत्र है जो ओशो भी कहते हैं कि जो भी हो रहा है उसे देखते रहो स्वीकार करो, आप हल्का महसूस करेंगे लेकिन शुरुआत में लगता है शरीर में झुनझुनी या लगेगा कि शरीर छूट रहा है हम उड़ रहे हैं हवा में ये सब शुरू में हो सकता है। बस देखते रहना है तभी जड़ और अंत तक पहुंचोगे, कोई विचार उठ रहा है तो आप परेशान होंगे बस विचार या भाव जो भी हो रहा है या मन कल्पना कर रहा है तो बस देखते रहो टोको नहीं जड़ को देखो फिर अंत तक धीरे धीरे स्वतंत्र होकर देखते रहना है बुद्ध पुरुष सबको पढ़ना है सभी के विचारों को बारीकी से निरीक्षण करना है। फिर आप धीरे धीरे आनंदित महसूस करेंगे और संतुष्टि के साथ सार्थक जीवन जीने लगेंगे साहब।
इतने ध्यान से पढ़ने और सुनने के लिए आभार, प्रणाम।
धन्यवाद,
रविकेश झा,
🙏❤️,