गुलामी तेरे हुस्न की———– ?☺️

गुलामी तेरे हुस्न की, हम क्यों करें।
तारीफ तेरे रूप की, हम क्यों करें।।
गुलामी तेरे हुस्न की—————-।।
यह इतना अभिमान, तुमको है किसपे यहाँ।
तुमसे भी ज्यादा हसीन, चेहरे हैं बहुत यहाँ।।
वहम पहले अपना, आप यह दूर करें।
गुलामी तेरे हुस्न की—————-।।
कदम हम क्यों अपना, रखें तेरी दर पर।
हम क्यों बदनाम हो, तुमसे यह इश्क कर।।
खिदमत तेरे ताज की, हम क्यों करें।
गुलामी तेरे हुस्न की—————-।।
हुर्रों से इश्क नहीं है, मकसद जीवन का।
अच्छा है शौक वतन पे, जीने-मरने का।।
कुर्बान तुमपे जान, हम क्यों करें।
गुलामी तेरे हुस्न की—————-।।
यकीन नहीं है किसी, खूबसूरत चेहरे पर।
वजह जुल्म तुमने किये हैं, प्यार में हम पर।।
हम है जी.आज़ाद, सलाम तुम्हें क्यों करें।
गुलामी तेरे हुस्न की—————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)