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18 Apr 2025 · 1 min read

आवारा चाहत

कुछ–कुछ ये आवारा चाहत, कुछ–कुछ ये बंज़ारा चाहत
तेरी आँखों में तैरे है, बनके एक शिकारा चाहत

राह के अंतस दीप जले
बिछी चाँदनी गगन तले
भाव–कामना लिपट–लिपटकर
मेरे मन के साथ चले

घनी–अँधेरी रातों में, कुछ–कुछ ये ध्रुवतारा चाहत
तेरी ज़ुल्फ़ों में कैदी बन, पल–पल करे गुज़ारा चाहत

तेरे होठों पर जो कलियाँ
सुर्ख रंगों को मलती हैं
केसर धुले हँसी चेहरे में
लाख शोखियाँ घुलती हैं

गोरे–गोरे गालों पर, कुछ–कुछ शर्म गँवारा चाहत
तेरे अधरों पर जो दहके, जलके एक अंगारा चाहत

सोलह–शृंगारों में सजती
माथे पर बिंदिया है जँचती
घूँघट शर्म–हया जो ढँकती
रूप से तेरे बदली छँटती

दमके लौंग में चमके है, कुछ–कुछ ये लश्कारा चाहत
तेरे कानों में है नाचे, बन–बाली चौबारा चाहत

नेह–महावर पाँव रंगे जो
प्रीत तुझे पायल पहनाए
रंग तेरे कुंदन है ढ़लता
अंग–अंग चंदन महकाए

हिना–हथेली रचे रंग में, कुछ–कुछ एक अरुनारा चाहत
तेरी उँगली के छल्लों में, घूमा करें इशारा चाहत

–कुँवर सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ✍️
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित

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