*बनारस ही प्रेम है*
मेरे लिए
बनारस ही प्रेम है —
जहाँ घाटों की सीढ़ियाँ
मुझे थामती हैं,
मंदिरों की घंटियाँ
मन की मौन बात कहती हैं।
गंगा की आरती
हर दिन मेरे लिए
एक नई कविता रचती है।
मणिकर्णिका घाट पर
जलती चिताओं का दृश्य,
जीवन के क्रम को
मौन भाषा में समझाता है।
इलायची वाली चाय,
पान बनारस का —
जीवन की कड़वाहट में
मीठा रस घोलते हैं।
कभी अपनेपन से भरी ये गलियाँ,
सदियों से मनुहार लिए,
सोंधी सी मुस्कान लिए,
हर रोज़
मेरा स्वागत
आगंतुक की तरह करती हैं।
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल