मन को साधने की युक्ति
(कवि: आलोक)
मन नहीं मानता सहज,
यह तो बड़ा चंचल चोर,
एक पल बंसी की ओर देखे,
दूजे पल दौड़े विषयों की ओर।
कहने को तो नाम लेता है,
श्याम तेरी मधुर बातों का,
पर ध्यान लगे न चरणों में,
स्वाद चखना चाहे रस लोलुप का।
तो कैसे साधें इस मन को?
कैसे बाँधें इसे प्रेम की डोरी?
कैसे हो भीतर स्थिरता,
जब लहराए हरदम यह चोरी?
पहली युक्ति: जप में रमना
हरि नाम का जाप करो,
जैसे हो मुरली की तान,
“कृष्ण” कहो अंतर से,
बिखर जाए हर अभिमान।
दूसरी युक्ति: स्मरण में ठहरना
हर कार्य में, हर सांस में
श्याम का ही हो विचार,
वो बैठे हैं तुम्हारे संग,
हर सुख-दुख के द्वार।
तीसरी युक्ति: संगति की सजगता
जैसे मिट्टी सुगंध ले ले
चंदन की संगत से,
वैसे मन भी शुद्ध हो
संतों की आदत से।
चौथी युक्ति: सेवा में लग जाना
कर्म को अर्पण कर दो,
बिना फल की चाह के,
जहाँ सेवा हो, वहाँ ईश्वर हो,
कहें संत सहज राह पे।
पाँचवीं युक्ति: रास की स्मृति
राधा संग जो रास रचाया,
उस प्रेम में मन को डुबा दो,
न फिर विषय भटकाएंगे,
श्याम की लय में सब सुलझा दो।
अंत में:
मन को साधना तप नहीं,
बस प्रीति की लगन है,
श्याम की छवि में डूब जाओ,
यही साधना का चिह्न है।
स्वरचित एवं मौलिक
कवि:आलोक कुमार पांडेय
गरोठ, मंदसौर, मध्यप्रदेश।
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