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16 Apr 2025 · 1 min read

कोई तस्वीर अब मुकम्मल नहीं बनती।

कोई तस्वीर अब मुकम्मल नहीं बनती।
बनती है कुछ अलग मग़र पहले जैसी नहीं बनती।।
कभी रंगत में तो कभी पाकीज़गी में बरहमी रह जाती है।
क्या करूं रंगों की रफ़ाक़त काग़ज़ों संग नहीं बनती।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”

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