खिड़कियां भी ख़ामोश पड़ी है दरवाज़े भी नहीं बोलते।

खिड़कियां भी ख़ामोश पड़ी है दरवाज़े भी नहीं बोलते।
शायद दोस्तों ने अब ठिकाने अपने कहीं और बना रखें हैं।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
खिड़कियां भी ख़ामोश पड़ी है दरवाज़े भी नहीं बोलते।
शायद दोस्तों ने अब ठिकाने अपने कहीं और बना रखें हैं।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”