शबनम
क्या सच्चाई दफन हो गयी बेईमानी बढ़ती जाती है।
सात जनों की हत्यारी “शबनम”जेल में मौज उडा़ती है।
वोअनैतिक कर्म था उसका”ताज” जो बना बहाना है।
18 बर्ष का लम्बा जीवन न्याय को ठेंग दिखाना है।
अजन्मे की ममता साल रही”अबोध भतीजा”मार दिया।
नशा पिलाकर सोये हुओं का धड़ से शीश उतार दिया।
दया याचिका ताज विनय, इन सबके क्या माने है।
निर्मम हत्या को भूल गये अन्धकार की चादर ताने हैं।
दोनो अपनी मौत मरें तो फांसी का क्या होगा?।
क्या मृत आत्माओं को हिन्द में न्याय सुलभ होगा।
ऐसे केस अनेकों हो गये इन सबको पालते जाओगे।
शबनम व मुस्कान को एक दिन ऐसे ही निर्दोष बताओगे।
यदि शबनम को फांसी होतीऔर भी भय खा जातीं।
क्या मालूम निर्दोष पतियों की रात कत्ल की ना आती।
मेरा एक सवाल यही है न्याय में इतनी देरी क्यों? ।
ऐसी निर्मम हत्यारी को फांसी में मजबूरी क्यों? ।