डिजिटल अरेस्ट: ठगी का नया फंडा

डिजिटल युग में जहां तकनीक ने जीवन को सुविधाजनक बनाया है, वहीं इसके दुरुपयोग ने अपराधों को भी नया चेहरा दे दिया है। आज का अपराधी कंप्यूटर के सामने बैठकर एक क्लिक में किसी को डरा सकता है, लूट सकता है, और उसकी मानसिक शांति छीन सकता है। ऐसा ही एक नया और खतरनाक साइबर अपराध है-“डिजिटल अरेस्ट स्कैम” जो न केवल धन की हानि करता है, बल्कि मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी पीड़ित को झकझोर कर रख देता है।
क्या है डिजिटल अरेस्ट स्कैम
इस स्कैम में साइबर ठग खुद को सरकारी जांच एजेंसी-जैसे पुलिस, सीबीआई, ईडी या नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो-का अधिकारी बताकर व्यक्ति से संपर्क करते हैं। वे झूठे आरोप लगाते हैं कि व्यक्ति का नाम मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स तस्करी या आतंकवाद जैसे गंभीर मामलों में शामिल है।
फिर शुरू होता है असली ड्रामा-वीडियो कॉल पर एक नकली पुलिस ऑफिस, वर्दीधारी अधिकारी, सरकारी फ़ाइलें और कानूनी भाषा के ज़रिए व्यक्ति को डराया जाता है। पीड़ित को बताया जाता है कि उसका “डिजिटल अरेस्ट” किया जा रहा है और यदि वह जेल नहीं जाना चाहता, तो “जमानत” या “केस सुलझाने” के लिए तत्काल भुगतान करे। वरिष्ठ नागरिक, महिलाएं, युवा पेशेवर, छात्र आदि इनके शिकार बनते हैं।
ठगों की योजनाबद्ध रणनीति
• प्रथम संपर्क: ठग ईमेल, फ़ोन कॉल या मैसेज के माध्यम से पीड़ित से संपर्क करते हैं, और दावा करते हैं कि उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही चल रही है।
• डर का निर्माण: वीडियो कॉल पर नकली ऑफिस, गंभीर भाषा, और धमकी भरे संवादों से व्यक्ति मानसिक तनाव में आ जाता है।
• भ्रम और दबाव: झूठे दस्तावेज़, फर्जी केस नंबर और कथित अधिकारी की उपस्थिति से भ्रम पैदा किया जाता है।
• -रुपये की मांग: “तुरंत सुलह का अवसर” देकर पीड़ित से लाखों रुपये ऐंठ लिए जाते हैं।
यूं फंस जाते हैं लोग
• अचानक का डर: सरकारी गिरफ्तारी की धमकी सुनकर आम नागरिक घबरा जाते हैं और जल्दबाज़ी में निर्णय लेते हैं।
• डिजिटल प्रोफाइलिंग: ठग सोशल मीडिया और अन्य स्रोतों से आपकी निजी जानकारी इकट्ठा कर लेते हैं, जिससे वे आपकी जिंदगी से जुड़ी बातें बता कर विश्वास जीत लेते हैं।
• सामाजिक बदनामी का भय: कुछ लोग परिवार, प्रतिष्ठा और करियर की चिंता में इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहते, जिससे अपराधियों को और बल मिलता है।
ताज़ा आंकड़े और वास्तविक घटनाएँ
• वर्ष 2024 में भारत में ₹120.30 करोड़ की ठगी डिजिटल अरेस्ट स्कैम से जुड़ी रही।
• गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह की धोखाधड़ी में 300% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
• दिल्ली के एक टेक इंजीनियर से ₹28 लाख की ठगी की गई, उसे बताया गया कि उसके आधार नंबर से बैंक धोखाधड़ी हुई है।
• मा. प्रधानमंत्री मोदी जी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इस स्कैम का उल्लेख करते हुए कहा: “रुको, सोचो, एक्शन लो।”
सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास
• इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) लगातार राज्यों को सतर्क कर रहा है।
• UNDP और CERT-In जैसे संगठन साइबर जागरूकता अभियानों में भागीदारी कर रहे हैं।
• NCERT और UGC ने विद्यार्थियों को जागरूक करने के लिए पाठ्यक्रमों में साइबर सुरक्षा को शामिल किया है।
कैसे करें खुद की रक्षा
कोई भी सरकारी एजेंसी वीडियो कॉल पर कार्रवाई नहीं करती। OTP, बैंक डिटेल या कोई दस्तावेज़ किसी अनजान को न दें। -रुपये मांगने वाले हर कॉल की पड़ताल करें। cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें या 1930 पर कॉल करें। अपने परिजनों, खासकर बुजुर्गों को इस प्रकार की ठगी के बारे में जानकारी दें। सोशल मीडिया पर ऐसे मामलों को शेयर कर अधिक से अधिक लोगों को सचेत करें। किसी भी संदिग्ध कॉल की रिकॉर्डिंग/स्क्रीनशॉट सुरक्षित रखें और तुरंत रिपोर्ट करें।
भविष्य की रणनीतियाँ
• कठोर कानूनों का निर्माण: डिजिटल धोखाधड़ी के लिए विशेष दंड और तेज़ सुनवाई आवश्यक है।
• AI आधारित स्कैम डिटेक्शन सिस्टम: टेलीकॉम और बैंकिंग सेक्टर को AI-आधारित चेतावनी तंत्र अपनाने होंगे।
• साइबर साक्षरता अभियान: स्कूल, कॉलेज और पंचायत स्तर तक जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
डिजिटल भय का इलाज-डिजिटल विवेक: डिजिटल अरेस्ट स्कैम एक ऐसा अपराध है जो हमारी सबसे बड़ी कमजोरी-डर और भ्रम-का दोहन करता है। इससे निपटने के लिए तकनीकी सुरक्षा के साथ-साथ मानसिक सतर्कता और कानूनी जानकारी भी ज़रूरी है। जागो, सीखो और बचो-यही मंत्र है साइबर युग में सुरक्षित रहने का।