नर्मदा की यात्रा
उदगम से निकलकर
दोबारा न मिली होगी
बहती हुई निर्मल सि बो
कितनी बेचैनी लिए होगी |
ये खयाल की बिछड़कर
अब मिलना न होगा
लहरों में छुपा आशु
कितनी रोई होगी
मिटाती फिरती है
प्यास जमाने की
वर्षो से बो भी तो कितनी प्यासी होगी |
लहरों के संग यू किलकती हुई सी ,
कितने गमों को छुपाती हुई होगी |
ममता का सागर लिए कल कल सी करती,
अपनी कहानी उसने किस्से कही होगी |
खड़े होकर किनारे पर
सोचती हूं अक्सर
नर्मदा की यात्रा कब पूरी होगी
शशि____✍️