मानवता शर्मशार
धुआं धार सड़क चलती थी युवक एक टकराया ।
औधे मुहं गिर गया सड़क पर रक्त अधिक बिखराया ।।
अस्थी मज्जा दूर छिटक गये, बेहोशी में आया।
मारन वाला भाग गया, ना पुलिस कोई दिखलाया ।।
पंडित एक उधर से गुजरा चोटी तिलक लगाके।।
उलट पलट कर जांच के देखा, जन्मा नही हिन्दुऑ के।
जाने दो कोई और धर्म है मेरा क्या पेच फँशा है।
जिसका होगा वो देखेगा, होगा जो राम रचा है I
तभी मौलवी आये वहौँ पर गौर बहुतेरी किन्ह ।
ना इस्लामी टोपी है ना कोई मजहबी चिन्ह ।l
देख के हालत खिसक लिए ना उपचार कराया ।
कार रोककर पादरी निकला कोई “पहचान” ना पाया I
इसमें ना कोई धर्म चिन्ह है ना ये मेरा बंदा ।
मुश्किल में जान फंसी है पडा़ काल का फंदा।
मुफलिस एक मजदूर खडा था,अफसोस की चादर ताने।
बड़े जोश में गुरसिख आया चमकी पगडी़ बाने ॥
किसका बेटा, किसने मारा, क्या कोई उपचार किया है।
धर्माधिकारी आये बहुत से बस धर्म से प्यार किया ।।
मानवता का पक्ष किया ना, ना उपकार जताया ।
धर्म की इस नफरत के आगे, इंशा जन्म गंवाया I
अगर लहू की पडे़ जरुरत ना देखे “पहचान” ।
जाति मजहब के इन झगडों में बेमौत मरे इन्शान |l
धर्म बनाया है मानव ने ना धर्म ने इंशा ईजाद किया ।
धर्म केइसचक्कर में फंसकर क्यो इंशा को बरबाद किया I|
मानवता कुछ शेष बचेगी तभी धर्म फल देगें। ।
अपनी-अपनी करने से तो धर्म सभी चल देंगे Il
मंगू” धर्म पुकारो पीछे पहले इन्सान बचाओ।
या धर्म का धंधा बंद करो सबको इन्शान बनाओ।।