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12 Apr 2025 · 4 min read

बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -211 से कुछ चुने हुए दोहे

[12/04, 13:10] Rajeev Namdeo: बुंदेली दोहा-फुकना/फूंकना (गुब्बारे)

फुकना से ना फूलियौ,करो न येसी भूल।
#राना टुच्चे कोउ भी,बातन नौंक बबूल।।

#राना जग मेला दिखे,फुकना साजे चार।
प्रेम-दया-परमार्थ के,भक्ती के‌ सुखकार।।

काम क्रोध मद लोभ के,फुकना मानौ चार।
भौत फूलतइ हैं हृदय,#राना चटकें मार।।

#राना दुनिया घूम रइ,फुकना- सी रइ फूल।
मेला सो जीवन दिखे,उड़ रइ भारी धूल।।

#राना फुक रय फूँकना,फूँक रयै है लोग।
कछु फूलत तुचकत कछू,बनबै ऐसे योग।।
*** दिनांक -12.4-2025
✍️ राजीव नामदेव”राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक-‘अनुश्रुति’त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email – ranalidhori@gmail.com
[12/04, 14:01] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा
बिषय-फुकना/फूकना (गुब्बारे)
(०१)
फुकनाँ घाँइ न फूलियौ,ढका लगै मिटजात ।
माछी बैठे चट उड़ै,”दाँगी” देखत रात ।।
(०२)
फुँकना घाँई जिन्दगी,जानै कब मुरझाय ।
“दाँगी”चलियौ तुम समर,फुकना फूट न पाय ।।
(०३)
मंदिर में फुँकना सजे,रंग विरंगे ऐन ।
“दाँगी”जनम दिवस मना,रहे दच्छिना दैन ।।
(०४)
घर दोरे ऐसे सजे,फुँकना दय लट काय ।
फुकनन से फूला बना,दाँगी”महल
सजाय ।।
(०५)
मौड़ा मना रहे दिवस,जनम दिवस की रैन ।
फुकना चारों ओर सै,”दाँगी”बाँदैं ऐन ।।
(०६)
हल्के बड्डे फूँकना,खूबइ लये फुलाय ।
“दाँगी”अटाइ ऊपरै,नइ-नइ कला सजाय ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी “इन्दु”नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326
[12/04, 14:17] Subhash Singhai Jatara: 12.4.25- शनिवार –फुकना/फूँकना (गुब्बारे)
अप्रतियोगी दोहे

फुकना से फूले फिरैं , फूफा देख बिआव |
गटा तरेरे कत फुआ , हल्ला नईं मचाव ||

जितने फूले फूँकना , तुचक समय पर जात |
कछू फुट्ट भी पैल से , सबखौं खूब दिखात ||

फुकना से ना फूलियो , ज्ञानी कत है बात |
पइसा टिके न हात पै , खर्चा सब हो जात ||

गुस्सा में भी आदमी, फुकना- सो जै फूल |
नँग-नँग फरकत से दिखें ,मचत हृदय में हूल ||

सूपनखा नकटी बनी , फुकना -सी गइ फूल |
फर्रानी ऐसी फिरी , मिट गइ रावण चूल ||

सुभाष सिंघई
~~~~~
[12/04, 15:17] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे
विषय:-फूॅंकना/गुब्बारे
बालापन में फूॅंकना, लये पजी के पांच।
खुशी भ‌ई मिल गव सुरग, झूम -झूम रय नांच।।

जीवन है इक फूॅंकना, कबै हवा कड़जाय।
अत्त करत गिर- गिर परत,समझ‌त नैयां काय।।

जी दिन कड़ जानें हवा, फूट फूॅंकना जैय।
हात लगे है कोउ नें, की खों हाल बतैय।।

हवा फूॅंकना की कढै, ऊस‌इ तन से प्रान।
जीवन क्षणभंगुर मिलौ,अनुरागी धर ध्यान।।

फुग्गा फुकना फूॅंकना, लेने ई सें ज्ञान।
जादा जो भर द‌इ हवा,मिट जैहै पैचान।।
भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”
[12/04, 16:23] Pramod Mishra Baldevgarh: ,, बुन्देली दोहा ,विषय,,फुकना,,फूकना,,
*************************************
जियत-जियत फूंँलेँ फिरेँ , जग में मान्स “प्रमोद” ।
तुचक फूँकना से डरेँ , इक दिन माँ की गोद ।।

फुकना कैसी जिन्दगी , फूँलेँ फटेँ हिराय ।
जब-तक दुनियाँ मेँ रहेंँ , रंग “प्रमोद”दिखाय ।।

फुलेँ-फुलेँ केँ फूँकना , बच्चे खेलेँ खेल ।
कछूँ पुचक केँ फूँट गय , तनक लगोँ हैं झेल ।।

जन्म दिवस पै फूँकना , फुलेँ-फुलेँ चिपकाँयँ ।
केउ जनेँ “प्रमोद”सेँ , सुंदरकांँड कराँयँ ।।

फुकना सी फूँली धना , बजनउँ पायल पैर ।
हँस-हँस कांँयँ “प्रमोद”सोँ , लाला है सब खैर ।।
***************************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[12/04, 19:53] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय फुकना
1
ब्याव घरै फुकना लगे, फुकनन बनों दुआर।
मन मोहक दोरौ लगै, देखें लोग निहार।
2
दे देबै फुकना फुला, छोटी गुडिया होय।
हँस मुस्का कें खेलबै, अँगना खूबइ सोय।
3
जनम दिना गोपाल कौ, भौतइ खुसियाँ छाँइ।
सजा दऔ फुकना फुला, घर मडवा की नाँइ।
4
फुकना सें फूले फिरत, जिदना होतइ ब्याव।
निकर जात सबरी हवा, बिदें गिरस्ती भाव।
5
बडवाई सुनबे मिली, गय फुकना से फूल।
निंदा सें मिर्ची लगत, जग कौ जौइ उसूल।
रामानन्द पाठक नन्द
[12/04, 21:19] Rajeev Namdeo: बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -211
प्रदत्त विषय – फुकना/फूकना (गुब्बारे)
संयोजक राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक – जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

प्राप्त प्रविष्ठियां :-

1
जन्म दिना हनुमान कौ, गये मनानें भोर।
सत रंगे फुकना फुला, सजा दऔ है दोर।।
***
-रामानन्द पाठक, नैगुवां
2
काय गर्भ तुम करत हो,, बनते बड़े अमीर।
फुकना जैसे फूटनें,,सबके सुनों शरीर।।
***
– मूरत सिंह यादव दतिया
3
हनूमान जन्मोत्सव,फुकना बाँदे द्वार ।
कलजुग में हनुमान की,हो रइ जय-जय कार ।।
***
-शोभाराम दाँगी, नदनवारा
4
फूँक-फूँक कैँ फूँकना , लगेँ फुलानेँ लोग ।
जन्म -दिवस हनुमान का , है नोनो संयोग ।।
***
-प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़
5
नरतन जैसें फूॅंकना, हवा कड़त मरजात।
जौलौ जी के जै दिना,राम आसरें रात।।
***
-भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”,हटा
6
जौ तन मानो फूंकना, सांसें प्रभु की दैन।
माया तज भज लो हरी, पाओगे सुख चैन।।
***
-आशा रिछारिया निवाड़ी
7
चार दिना की जिंदगी, सबइ जनन की रात।
हवा भरै अभिमान की, फुकना सी फट जात।।
***
– अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी
8
पैल फूॅंकना सी हती , बिटिया गोल मटोल।
सूख छुहारौ हो गई , सुन सासो के बोल।।
***
-आशाराम वर्मा ” नादान “पृथ्वीपुर
9
करम करो नोने सदा, भइया जगमें आय।
है फुकना सी जिन्दगी,कबै हवा कडजाय।
***
-एम. एल. त्यागी,खरगापुर
10
हम सब फुकना ना बने, ना फुक्का रय कोय।
ना फाँकें हम हर गली,कहै गपोड़ी मोय।।
***
-सुभाष सिंघई, जतारा
11
फुकना सें घर-घर सजो, सज रय वंदनवार।
प्रगट भये हनुमत लला, होवै जै-जै कार।।
***
-श्यामराव धर्मपुरीकर गंजबासौदा
12
बेंचे फुंकना चार ठउ , जाकें काल बजार।
मिले रुपैया बीस हैं , छौटौ सौ रुजगार।।
***
-वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़
13
फूलौ फिरत घमंड में, फुकना सौ इंसान।
हवा निकरतन छोड़कें, जानें सकल जहान।।
***
-संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
संयोजक राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक – जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
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