बाल रामायण वर्तमान मे सनातन संस्कृति का सत्यार्थ

बाल रामायण वर्तमान में सनातन संस्कृति का सत्यार्थ (प्रचार)—
रचनाकार-
दीपक गोस्वामी ‘चिराग’
प्रकाशक एवं मुद्रक –
सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन, एन-77 कनॉट प्लेस दिल्ली
समीक्षक
श्री नन्दलाल मणि त्रिपाठी
गोरखपुर
(क )
रामायण धर्म ग्रन्थ का इतिहास एवं वर्तमान दशा–
रामायण ऐसा ग्रन्थ जो समाज को मर्यादाओं, संस्कृति, संस्कार की दिशा, दृष्टिकोण तो है ही सनातन के ईश्वरीय आचरण का दर्पण भी है।
रामायण की सर्वप्रथम रचना आदि कवि वाल्मीकि ने कि थी। जो त्रेता युग मे भगवान श्री राम के काल मे स्वयं शोभायमान थे और भगवान राम के आचरण एवं पृथ्वी पर मनुष्य रूप मे उनके व्यवहार को स्वयं देखा भी गया है। अतः महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण भविष्य के रामायण रचयिताओ के लिए मूल स्रोत के रूप मे है।
सातवीं शताब्दी के बाद भारत मे एवं सम्पूर्ण विश्व मे बढ़ते इस्लामिक प्रभाव के कारण सनातन अपने अस्तित्व के लिए झूझने लगा। उससे पूर्व मौर्य साम्राज्य विन्दुसार के बाद सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेने के बाद ,सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार पर केंद्रित सत्ता
-शासन से आर्यावर्त मे लगभग सनातन धर्म समाप्त हो चुका था।
शांकरर्चार्य जी द्वारा चार पीठों की स्थापना कर पुर्नस्थापित करने का प्रयास किया गया। तात्पर्य स्पष्ट है कि मुग़ल शासन काल मे सनातन धर्म पर प्रहार पर प्रहार होते रहे यदि महाराणा प्रताप को छोड़ दिया जाए तो तत्कालीन सत्ता की शक्तियों ने मुगलो से या तो समझौते कर लिए थे या रिश्ते-नातों के बंधन में बांधकर या उनकी चाकरी करते हुए बस जीवन निर्वाह भर किया। परिणाम यह हुआ कि सनातन धर्म का पुनः पतन होने लगा और सनातन समाज मे भय से धर्म-पलायन होने लगा। आज बड़े गर्व से हम सभी भरतीय यह कहते है कि इंडोनेशिया में आज भी रामायण नित्य पढ़ी जाती है। वहाँ रामलीलाओं का मंचन होता है क्योंकि इंडोनेशिया के लोगों के पुरुखे हिन्दू थे। वर्तमान में वे इस्लाम को अनुयायी हैं।
यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है कि सनातन समाज भयाक्रांत होकर या सनातन धर्म से बोझिल और अपमानित होकर देश दर देशों ने सनातन धर्म का त्याग कर दिया था।
तेरहवीं शताब्दी से भारतीय उप महाद्वीप में मुग़ल परचम लहरा रहा था। धर्मान्तरण तेजी से हो रहा था और सनातन धर्म ग्रंथों,वेदों पुराणों आदि के पढ़ने तदानुसार आचरण करने की बात तो बहुत दूर की बात थी। वेदों, पुराणों उपनिषदों एवं धर्मग्रंथों को बचाना एक बड़ी समस्या थी। ठीक इसी काल खंड मे कुछ भक्ति भाव से ओत प्रोत कवियों का जन्म हुआ जिसमे सूरदास, मीरा एवं तुलसीदास प्रमुख थे।
सूरदास जी एवं मीरा ने कृष्ण भक्ति की अलख जगाए रखी तो तुलसीदास जी ने राम भक्ति को जीवंत रखा।
नाम तो कबीर,रसखान एवं रहीम का भी लिया जाता है लेकिन सनातन धर्म के मौलिक चिंतन में या उसे जीवंत रखने मे इनका योगदान नहीं है। महान संत कबीर दास जी सूफ़ी संत थे जिन्होंने निर्गुण आराधना के आत्मीय बोध को ही धर्म माना है।
कबीर दास जी ने तो साकार ईश्वरीय अवधारणा को स्वीकार नहीं किया है उनका सिद्धांत सदाचरण एवं कर्मवाद है ।
जो वर्तमान मे कबीर पंथ का मूल सिद्धांत भी है।
कबीर दास जी ने हिन्दू मूर्तिपूजा पर प्रहार किया है, तो मुसलमान की कट्टर आराधना पद्धति पर भी आक्रमण किया है। यथा-
(पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार, ताते तो चाकी भली पीस खाय संसार)
(कांकर प।थर जोड़ि के मस्जिद लइ चुनाय।
ता चढि मुल्ला बांग दे, क्या बहिरा हुआ खुदाय)
ऐसे मे सूर, मीरा,तुलसी ने भक्ति मार्ग से राम एवं कृष्ण के ईश्वरीय अवधारणा के सत्यार्थ से आदि-अनंत सनातन को जीवंत व जागृत रखा।
सूरदास जी द्वारा कृष्ण भक्ति की अभिव्यक्ति सूर सागर एवं तुलसीदास जी द्वारा रचित रामलला नेहछू, रत्नावली, रामचरित मानस आदि ने रामभक्ति की शक्ति संवेदना क़ो जीवंत रखा ।यह वह दौर था जब
वेदव्यास जी के पुराणों एवं महर्षि वाल्मीकि जी की रामयण की सामाजिक व धार्मिक प्रासंगिकता तो थी किन्तु संस्कृत भाषा होने के कारण धार्मिक भाव-प्रवाह मे प्रमाणिक नहीं रह गयी थी ऐसे समय में आम बोल चाल की भाषा में रचित सूर सागर एवं रामचरित मानस कृष्ण एवं राम भक्ति और सनातन आस्था-अस्तित्व के मूल श्रोत बन गए।
(ख़ )
रामायण का वैश्विकरण—
ज़ब मुग़ल शासनकाल समाप्त हो गया और देश अंग्रेजों के अधीन हो गय यह वह काल खंड था ज़ब कहावत मशहूर थी विकटोरिया के शासन मे सूर्यास्त नहीं होता। अंग्रेज भारत से मुग़ल शासन काल मे,अशिक्षित-गरीब भारतीयों को मजदूरों के रूप मे गुलाम /बंधक बनाकर ले जाते थे, जिन्हे गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था। जिनकी वर्तमान पीढ़ीयों ने अनेक देश बसा दिये हैं जिनमे मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना, त्रिदिनाद, दक्षिण अफ़्रीकी आदि देशों मे रामचरित मानस सनातन के मूल धर्म ग्रन्थ के रूप मे गिरमिटिया मजदूरों द्वारा पहुंची और वर्तमान मे भी प्रासंगिक हैं!
सम्पूर्ण विश्व कि बिभिन्न भाषाओं मे अब तक तीन सौ से अधिक रामायण लिखे जा चुके हैं जिनके मूल श्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एवं गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरित मानस ही हैं
(ग )
कवि दीपक गोस्वामी ‘चिराग ‘ विरचित बालरामायण की प्रसंगिगता–
दीपक गोस्वामी द्वारा रचित बाल रामायण वास्तव में सनातन संस्कृति क़ो समाज व राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति से जोड़ने एवं उसके मनोमस्तिष्क पर भावनाओं में प्रतिस्थापित करने का अनुकरणीय सराहनीय प्रयास है।
महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण मे चौबीस हज़ार श्लोक हैं तो गोस्वामी जी के रामचरित मानस में सात खंड छियालिस सौ आठ चौपाई, सत्ताईस श्लोक छियासी छंद एक हज़ार चौहत्तर दोहे एवं दो सौ सात सोरठा जो बारह सौ पृष्टो मे हैं!
दीपक गोस्वामी जी ने सात खंडो क़ो मात्र एक सौ ग्यारह छंदो में ही बाल रामायण में पिरो दिया है ।बाल रामायण की विशेषता यह है कि आदि से अंत तक सभी पात्रों को परिभाषित परिचय दिया है ।एक सौ ग्यारह छंद, मात्र छप्पन पृष्ठों मे हैं जिससे कि पाठक क़ो समझने मे सुविधा रहे साथ ही साथ बालकों मे संस्कृति-संस्कार की दृढ़ नींव रखने मे बाल रामायण परिणाम परक प्रभावी है। साथ ही साथ वर्तमान भौतिकतावादी भागमभाग वाले युग में संचार क्रांति एवं मोबाइल के दौर मे जहाँ कोई भी पुस्तक पढ़ना नहीं चाहता है। गूगल गुरु से ज़ब जो जानना चाहा बस पूछ लिया। ऐसे दौर मे ज़ब छोटे से छोटे प्रश्न जो सनातन धर्म से संबधित हैं बड़े बुजुर्ग आदमी भी नहीं बता पाते। टी वी पर सदी के महानायक द्वारा एक शो आयोजित किया जाता है, कौन बनेगा क़रोड़पति, इसमें अनेकों बार उनके द्वारा राम के माता-पिता आदि का नाम पूछा गया और हाॅट सीट पर बैठा व्यक्ति बगलें झांकता नजर आता है। वर्तमान के संचार क्रांति का कमाल से वे हाॅट सीट तक पहुंच तो गए किंतु उनकी जानकारी एवं ज्ञान का स्तर अति न्यून था। जबकि इनमें बहुत तो ऐसे थे जिन्होंने ने बहुत से धार्मिक धरावाहिकों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया है।
यह स्थिति तब और हास्यास्पद बन जाती है ज़ब स्वर्गीय रामानंद सागर कृत रामायण सहित रामाकथा पर न जाने कितनी फिल्में एवं धरावाहिक बने, और प्रसारित हुए हैं। जिसके प्रतिदिन विडिओ-रील आडिओ क्लिप सोशल मिडिया पर चलते रहते हैं।
ऐसे काल खंड मे दीपक जी द्वारा रचित बाल रामायण का पात्र परिचय बहुत प्रभावी सकारात्मक प्रभाव है ।इस प्रकार बाल रामायण एक सार्थक परिवर्तन का आदर्श शांखनाद है!
बाल रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र बाल्यकाल से ही सत्य आचरण के लिए प्रेरणा प्रेरक एवं दिशा-दृष्टि कोण प्रदान करने मे सक्षम एवं सफल है!
(घ )
साहित्यिक सिद्धांतो पर बाल रामायण —
बाल रामायण भगवान श्रीराम की स्तुति से प्रारम्भ होती बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य कांपड, किष्किंधा काण्ड, सुंदर काण्ड, युद्ध काण्ड,उत्तर काण्ड तक सुगम सतत प्रवाहित होती हुई राम स्तुति पर समाप्त होती है!
बाल रामायण के रचानाकार दीपक गोस्वामी जी द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को बड़ी सहजता रोचकता से प्रस्तुत किया गया है जिससे कोमल मन सुकुमार बाल मन को विशेष आनंद की अनुभूति हो और जिसके कारण सुगमता से पूरी राम कथा को समझ कर आचरण मे आत्म साथ करने मे सुगमता होंगी!
बाल रामायण कि अति विशिष्टता यह भी है कि एक बैठक मे लगभग एक घंटे से कम की अवधि मे आद्योपंत पठनीय है!
भगवान राम के जीवन दर्शन, आचरण, मर्यादाओं नैतिकताओं को बड़े सरल पद्धति में दीपक गोस्वामी जी द्वारा बाल रामायण के रूप में प्रस्तुत किया गया है!
निर्विवाद रूप से किसी सरगर्भित बिषय को सरल सुगम बनाकर प्रस्तुत करना बहुत दुरूह कार्य है जिसे दीपक गोस्वामी जी ने अपनी दृढ इच्छाशक्ति
संकल्पशक्ति ज्ञान एवं निष्ठा के साथ बाल रामायण के रूप मे प्रस्तुत किया गया है!
इस उदाहरण से स्पष्ट है –
#तहस नहस कर कर दीन्हा उपवन, उच्चारे फिर जय श्री राम!
मारे सारे भट रखवारे अक्षय कुमार का काम तमाम!
सब बलशाली निशिचर मारे, आया मेघ नाथ बलवान!
ब्रह्मफांस मे बंधते हनुमत ब्रह्मा जी का रखकर मान!#
शब्दों का चयन समन्वय प्रवाह बहुत ही परिभाषित एवं परिष्कृत साहित्यिक शैली मे है जो साहित्यिक दृष्टिकोण से हर कसौटी पर खरी उतरती है!
वीर /आल्ह छंद में सम्पूर्ण बाल रामायण के सातों काण्ड निबद्ध हैं , मंगलाचरण के रूप में दी गई प्रार्थना विधाता छंद में एवं समापन पर आरती के रूप में श्रीराम स्तुति हरिगीतिका छंदो पर आधारित हैं।
बाल रामायण के साहित्यिक पहलू पर बहुत से ख्याति लब्ध विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इसे श्रेष्ठतम सैद्धांतिक साहित्यिक रचना के रूप मे व्याख्यायित किया गया है!
बाल रामायण की भाषा मुख्यत हिंदी ख़डी बोली है बीच-बीच मे कहीं_कहीं अवधी भाषा के प्रयोग ने छंदों को माधुर्य मे पिरो दिया है।
रचनाकार ने अपने उद्देश्य व संकल्प के अनुसार लेखनी को भाषा शैली के बंधन से मुक्त रखते हुए, बाल मन सुलभ आकर्षक अभिव्यक्ति को सुगम,सरल,सुबोध और वहुपयोगी बनाया है।
निष्कर्ष —
बाल रामायण दीपक गोस्वामी जी की ऐसी कृति है जो समय काल परिस्थिति के अनुसार है!
तेज संचार क्रांति के वर्तमान युग मे पुस्तक पढ़ना कम ही प्रचलन मे रह गया है मोबाइल लगभग सभी के पास उपलब्ध है आवश्यकता अनुसार जिस विषय की जानकारी की आवश्यक होती है उसे गूगल के माध्यम से प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे में गोस्वामी तुलसीदास जी की बारह सौ पृष्ठ की रामचरित मानस पढ़ने की एवं समझने की कोशिश सिर्फ वही लोग करते हैं जो सनातन के संत प्रहरी है और जिन्हे सनातन धर्म कि सेवा प्रसार एवं भगवान की भक्ति करनी होती है!
भरतीय गाँवों मे विशेषता उत्तर भारत मे पांडित्य करने वाले एवं संस्कार कर्म पद्धतियों क़ो सम्पन्न कराने वाले परिवारों मे सनातन के कुछ ग्रंथो का नियमित पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरण होता रहता है जिसमे रामचरित मानस, श्री मद् भागवत गीता प्रमुख रूप से सम्मिलित है!
महर्षि वाल्मीकि रामायण विरले ही पढ़ते है एवं उसके विषय मे ज्ञान रखने कि चेष्टा करते है कारण वाल्मीकि रामायण संस्कृत भाषा मे हैं और संस्कृत भाषा भारतीय समाज मे मात्र अतीत की छाया का अभिमान बनकर रह गयी है। जबकि भागवत गीता को जो संस्कृत मे ही है फिर भी भारतीय समाज मे ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार में जीवन दर्शन के ग्रन्थ के रूप मे मान्यता के साथ साथ अन्य धर्म ग्रंथो के मूल ग्रंथो के बराबर सम्मान प्राप्त है!
भरतीय समाज मे सनातन परम्परा में नारायण अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चरित्र की कथा नियमित कहीं न कहीं होती रहती है जिसके
मर्मज्ञों में स्वर्गीय राम किंकर उपाध्याय ,वर्तमान में मोरारी बापू जी, रामभद्राचार्य जी,विजय कौशल जी को मानस मर्मज्ञ का सम्मान प्राप्त है!
नित्य निरंतर श्री राम कथा प्रवाह में गोस्वामी तुलसीदास जी का रामचरित मानस ही मूल श्रोत है महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण संदर्भ हेतु ही प्रचलन में है ऐसी स्थिति मे भरतीय धर्म दर्शन एवं सनातन संस्कृत का प्रभाव आचरण के रूप में नई पीढ़ी पर पड़ना असंभव है!
सामान्य भरतीय परिवारों मे रामचरित मानस का नवाह, मास परायण, पाठ घर के उस सदस्य द्वारा किया जाता है जो वरिष्ठ एवं बुजुर्ग होता है तथा उसके पास समय की पर्याप्तता होती है और परिवार की नई पीढ़ी परिवार के बुजुर्ग से बहुत सरोकार अपनी व्यस्तता के कारण नहीं रख पाती ।किसी विशेष उत्सव अवसर पर ही अखंड रामचरित मानस का पाठ कराया जाता है जो उत्सव मे धार्मिक तड़का ही होता है। ऐसे में मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवन दर्शन को भारतीय समाज के आचरण में समम्मिल कर पाना दुरूह है!
धर्म संस्कार के प्रति जागरूक कुछ भारतीय परिवारों में अपने भावी पीढ़ी के बच्चों को रामचरित मानस की कुछ महत्वपूर्ण दोहे चौपाई को कंठस्थ करा कर धर्म के प्रति अपनी जिम्मेदारियों की इति श्री समझ ली जाती है!
वर्तमान परिस्थितियों मे राम राज्य की कल्पना एवं राममय समाज राष्ट्र की अवधारणा अवनि अस्तित्व विहीन होने के कारण कान्वेंट कल्चर के वर्तमान समय तथा भारत की सामाजिक वर्तमान स्थिति में बाल रामायण के रचयिता दीपक गोस्वामी ‘चिराग’ का प्रयास वास्तविकता के धरातल पर रामराज्य की स्थापना एवं राममय समाज का यथार्थ अनुष्ठान यज्ञ है!
वर्तमान से भारत के संगठित जागृत सनातन समाज को उसकी सांस्कृतिक चेतना धार्मिक आचरण का बोध की व्यवहारिकता का पराक्रम है बाल रामायण!
भारत के भविष्य बचपन से संस्कार धार्मिक मूल्यों से सुसज्जित करती परिपूर्ण बनाती है बाल रामायण!
बाल रामयण पढ़ने मे सरल एवं सुलभ है एवं मात्र छप्पन पृष्ठों में पात्र परिचय के साथ एक सौ ग्यारह छंदो मे है गेय है समझने मे सरल एवं रुचिकऱ है, बच्चो को आकर्षित करती है और उनमें रामायण पढ़ने की ललक जिज्ञासा एवं उत्साह ऊर्जा का संचार करती है!
यही यथार्थ सत्यार्थ दीपक गोस्वामी द्वारा रचित बाल रामयण महर्षि वाल्मीकि के रामायण एवं गोस्वामी जी के रामचरित मानस की रचना की अवधारणा विचार संकल्प उद्देश्य को मूर्तता प्रदान करती है और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन आदर्शों नैतिक मूल्यों को आत्म साथ करने का आवाहन करती है एवं आचरण को व्यवहारिकता का पराक्रम पुरुषार्थ प्रदान करती है। दीपक गोस्वामी जी ने बाल रामायण की रचना करके राष्ट्र एवं समाज को उसके भविष्य के लिए शास्त्र तथा जीवन की चुनौती काल में आचरण के धीर धैर्य का शस्त्र प्रदान किए है
बाल रामायण जैसी अद्भुत कालजयी रचना के लिए रचनाकार दीपक गोस्वामी जी को साधुवाद!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!